राजीव गांधी 1990-91 में खुद प्रधानमंत्री न बनकर ज्योति बसु को
प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। उस समय राजनीतिक अस्थिरता के दौरान उन्होंने
दो बार बसु को मनाने की कोशिश की थी। यह दावा बंगाल के डीजीपी और सीबीआई के
डायरेक्टर रहे अरूण प्रसाद मुखर्जी ने अपनी जीवनी में किया है। हाल ही में
प्रकाशित किताब "अननोन फेसेट्स ऑफ राजीव गांधी, ज्योति बसु, इंद्रजीत
गुप्ता" मुखर्जी की डायरी पर आधारित है।गौरतलब है कि 1956 में आईपीएस ज्वाइन करने के साथ ही मुखर्जी ने डायरी
लिखना शुरू किया था। इसमें दार्जिलिंग एसपी, बंगाल डीजीपी, राज्य सतर्कता
आयुक्त, सीबीआई चीफ, गृह मंत्रालय में विशेष सचिव और आखिर में गृह मंत्री
(इंद्रजीत गुप्त) के सलाहकार के तौर पर काम करने के दौरान राजीव गांधी,
ज्योति बसु और इंद्रजीत गुप्त के साथ बातचीत के ब्यौरे मुखर्जी ने दर्ज
किये हैं। अक्टूबर 1990 में मुखर्जी गृह मंत्रालय में विशेष सचिव के तौर पर
कार्यरत थे।राजीव गांधी ने मुखर्जी से कहा कि वह ज्योति बसु के साथ उनकी बैठक तय
करें। लेकिन वामपंथी नेता बसु ने कहा कि इस बारे में कोई भी निर्णय पार्टी
की सेंट्रल कमेटी और पोलित ब्यूरो का होगा। इस मसले पर सीपीएम के वीटो के
चलते राजीव गांधी की तीसरी पसंद चंद्रशेखर कांग्रेस की मदद से प्रधानमंत्री
बने। 1991 में जब चंद्रशेखर को असफलता हाथ लगी, तो राजीव गांधी ने एक बार
फिर ज्योति बसु से संपर्क किया, लेकिन बसु ने दोबारा यह निर्णय पार्टी के
ऊपर डाल दिया। मुखर्जी ने लिखा है, राजीव का संदेश लेकर मैं पूर्व सांसद
बिप्लव दास गुप्ता से उनके घर पर मिला। लेकिन मेरा अंदाजा सही साबित हुआ..
और बंगाल के हित में लेफ्ट फ्रंट को अपने पांव पसारने के लिए मिला दूसरा
मौका अपनी मौत मरने को मजबूर हुआ। बंगाल के पूर्व डीजीपी के मुताबिक पांच साल बाद संसद में जारी गतिरोध
के चलते क्षेत्रीय नेताओं (जिनमें मुलायम सिंह भी शामिल थे) ने बसु का नाम
प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया, लेकिन सीपीएम सेंट्रल कमिटी ने
फिर इसके खिलाफ मतदान किया। 1996 के आखिर में एक साक्षात्कार के दौरान बसु
ने इसे "ऎतहासिक भूल" करार दिया। मुखर्जी ने इस बारे में लिखा है, ये सब
जानते हैं कि ऎसी बडी गलतियां 1990-91 के दौरान दो बार हुईं जो कि सीपीएम
की अदूरदर्शिता, छोटी सोच और बडी गलतियां करने की आदतों का परिणाम थी।
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