
आम आदमी के लिए न्याय अब भी दूर की कौड़ी
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पी
सतशिवम का मानना है कि आम आदमी तक पहुंच बनाने की कोशिशों के बावजूद न्याय
अब भी उनके लिए दूर की कौड़ी है। कानूनी कार्यवाही की आंधी में उनके हितों
की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। मुख्य न्यायाधीश के विचार का सुप्रीम कोर्ट
के वरिष्ठतम जज जीएस सिंघवी ने भी समर्थन किया। सिंघवी का कहना है कि लाखों
लोगों के लिए न्याय अब भी भ्रम है। राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस के मौके पर यहां शनिवार को मुख्य न्यायाधीश
ने कहा कि अधिकतर लोगों ने यह मान लिया है कि अदालतों में सिर्फ कानूनी
बात होती है। यहां न्याय नहीं मिलता। इसलिए जागरूकता फैलाने के साथ
मानसिकता बदलने के लिए भी कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम
कोर्ट में कुछ संवेदनशील मामले समय ले लेते हैं इसलिए नियमित मामलों को
वक्त नहीं मिल पाता। कुछ योजनाओं को लागू करने के बावजूद हम लक्ष्य (नियमित
मामलों का निपटारा) हासिल नहीं कर पाए। ग्रामीण इलाकों में रोजगार देने
वाली केंद्र सरकार की मनरेगा योजना की जस्टिस सतशिवम ने प्रशंसा की, लेकिन
साथ ही जोड़ा कि इसके अंतर्गत कार्य रह लोगों को तय मजदूरी नहीं मिल पा रही।वहीं जस्टिस सिंघवी ने कहा कि इस पर सोचने की आवश्यकता है कि क्या हम
65 सालों में लोगों को न्याय दिलाने के लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं और क्या
हमने ऐसा माहौल बनाया, जिसमें सभी लोगों को समान मौका मिल सके। हम पर
न्याय दिलाने का जिम्मा है, इसलिए हमें लोगों के घरों तक न्याय पहुंचाने का
वादा करना होगा। जस्टिस सिंघवी ने अशिक्षा, जागरूकता का अभाव, कार्यवाही
में देरी और कानूनी खर्चो को न्याय नहीं मिलने के कारणों में शामिल किया।
उन्होंने जजों को समाज के पिछड़े लोगों के मामलों की सुनवाई के दौरान
मानवीयता का परिचय देने का आग्रह किया।
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