Sunday 8 November 2015

देश का मूड समझें मोदी

 2014 में जब देश में लोकसभा का चुनाव चल रहा था, हर ओर लोगों के दिलो दिमाग पर एक ही नेता के नाम की धूम थी। वह नाम था गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी का। देश के मतदाताओं ने किसी की बात नहीं सुनी, नरेन्द्र मोदी की बात पर भरोसा किया और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए प्रचंड बहुमत से चुना। शायद लोगों को इस बात का विश्वास था कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही देश में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा। पर प्रधानमंत्री बनने के 18 माह बाद भी देश में कोई परिवर्तन नहीं नजर आया। न गुड गवर्नेंस दिखा, न ही महंगाई कम हुई, न ही भ्रष्ट्राचार कम हुआ और न ही देश में बलात्कार जैसी अपराध की घटनाएं कम हुर्इं। उल्टे देश को कुछ नई घटनाओं का सामना करना पड़ा। मसलन ‘लव जिहाद’, ‘घर वापसी’, आरक्षण खत्म करने की वकालत जैसे नए मुद्दे गढ़े जाने लगे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेन्द्र मोदी के तेवर विपक्षी नेता जैसा ही दिखता रहा। पूरे देश में भाजपा के शीर्ष नेताओं पर भी एकाधिकार कायम करने की कोशिश शुरू हो गयी। हर मुद्दे पर अपनी अलग राय रखने में महारत हासिल करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन समस्याओं का समाधान ढूंढने के बजाय विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए उस पर एक नई तोहमत लगानी शुरू कर दी। दिल्ली में चुनाव आया तो उन्होंने अरविन्द केजरीवाल को निशाने पर ले लिया और उनके गोत्र पर सवाल खड़ा दिया। बिहार का चुनाव आया तो उन्होंने नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल खड़ा कर दिया। दिल्ली की तरह बिहार के चुनाव में भी पूरा प्रचार अभियान खुद पर केन्द्रित कर लिया। नतीजा यह निकला कि पब्लिक का मूड बदल गया। जो पब्लिक लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नाम की माला जप रही थी, उसी पब्लिक ने दूसरा विकल्प ढूंढना शुरू कर दिया। दिल्ली में भारी परायज मिलने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता का मूड नहीं समझा और बिहार के चुनाव में फिर वही राग अलापना शुरू कर दिया। अब बिहार के परिणाम सामने हैं। यहां भी मोदी के गठबंधन को महा हार का सामना करना पड़ा है। प्रधानमंत्री को यह समझना चाहिए कि देश की जनता कभी किसी के पीछे चलने की आदी नहीं है। उसे विकास के साथ ही भरपूर स्नेह, प्यार और आपसी भाईचारे की भावना भी चाहिए। उसे बगैर स्नेह, प्यार और भाईचारे के कोरा विकास की बात सहज मंजूर नहीं है। 

Thursday 6 August 2015

छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री दिखाएं नैतिकता


शिक्षक समाज का दर्पण होता है। शिक्षक छात्र को जिस सांचे में ढालता है, वैसे ही उस समाज का निर्माण होता है। किसी समाज के उत्थान और पतन का इतिहास उस समाज के शिक्षक ही तय किया करते हैं। अगर शिक्षक नैतिक विहीन हो जाए तो वह समाज कैसा होगा? शायद इसीलिए हमेशा से महापुरुषों ने नैतिकता को बनाए रखने पर विशेष जोर दिया है। अहम सवाल है कि शिक्षकों  का   नेतृत्व करने वाला शिक्षा मंत्री ही अगर नैतिक विहीन आचरण करे तो समाज की क्या दशा होगी। नयी पीढ़ी को आदर्शवान बनाने वाले शिक्षक की मनोदशा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आदि जैसे कई सवाल खड़े होंगे। इन सारे सवालों को इसलिए उठा रहा हूं कि छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप को अपनी पत्नी के कारण नैतिकता की अग्निपरीक्षा में उतरना होगा। अगर वह इससे दूर भागते हैं तो समाज और राजनीति की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाएंगे और नैतिकता के मानदंड पर खरे उतरते हैं तो हमेशा के लिए उदाहरण बन जाएंगे और उनका प्रकरण एक नजीर के रूप में पेश किया जाएगा। आइए हम उस पूरी घटना का जिक्र करते हैं, जिसके कारण छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप की नैतिकता पर सवाल खड़ा हो गया है। केदार कश्यप बस्तर टाइगर के रुप में प्रसिद्ध रहे आदिवासी नेता बलीराम कश्यप के दूसरे बेटे हैं। बलीराम बस्तर क्षेत्र के आधा दर्जन से अधिक बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित रहे हैं। उनके निधन के बाद उस सीट पर वर्तमान में बलीराम के बड़े बेटे दिनेश कश्यप सांसद हैं। दिनेश के ही छोटे भाई केदार कश्यप छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री है। कश्यप बंधुओं का छत्तीसगढ़ सरकार में खासा प्रभाव है। केदार कश्यप की पत्नी शांति कश्यप पं. सुंदरलाल शर्मा ओपन यूनिवर्सिटी की एमए (अंग्रेजी) फाइनल ईयर की छात्रा हैं। वह जगदलपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित लोहंडीगुडा में बने परीक्षा केन्द्र पर परीक्षार्थिनी के रूप में शामिल हैं। 4 अगस्त 2015 को द्वितीय पाली में (2 से 5 बजे) अंग्रेजी विषय का अंतिम प्रश्नपत्र की परीक्षा थी। केदार कश्यप की पत्नी के रोल नंबर 66863 को कंक्ष क्रमांक 10 में सीट आवंटित हुई थी। परीक्षा के दौरान इस सीट पर किरण मौर्य नाम की महिला परीक्षा देती पायी गयी। किरण मौर्य के पास से शांति कश्यप के नाम से जारी प्रवेश पत्र पाया गया। इस प्रवेश पत्र पर शांति कश्यप की फोटो लगी थी। इतना ही नहीं किरण मौर्य पूछताछ में खुद को यह सबित करने की कोशिश कर रही थीं कि वह ही केदार कश्यप की पत्नी हैं। पर जांच पड़ताल में मामला खुलकर सामने आ गया। स्पष्ट रूप से कहा जाय तो सच यह है कि शिक्षा मंत्री की पत्नी होने का लाभ उठाकर शांति कश्यप ने अपने स्थान पर दूसरी महिला को परीक्षा देने के लिए बैठा रखा था। इस कार्य में निश्चित रुप से परीक्षा संचालन सामिति और केन्द्र व्यवस्थापक का भी सह प्राप्त है। अगर ऐसा न होता तो शिक्षा मंत्री की पत्नी के स्थान पर कोई दूसरी महिला परीक्षा देने कैसे बैठ जाती है। पं. सुंदरलाल शर्मा ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति वंश गोपाल सिंह ने शांति कश्यप को परीक्षा के लिए अपात्र घोषित कर दिया है। इसके बाद शिक्षा मंत्री केदार कश्यप का बयान आया कि उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उनकी पत्नी परीक्षा दे रही हैं। ऐसा कैसे संभव है। साफ है कि प्रकरण उजागर होने के बाद शिक्षा मंत्री अपना बचाव कर रहे हैं। क्या शिक्षा मंत्री जैसे महत्पूर्ण पद पर बैठे लोगों का आचरण ऐसा होना चाहिए। केन्द्र में यूपीए-1 की सरकार थी। उस समय तत्कालीन केन्द्रीय विदेश राज्य मंत्री रहे शशि थरुर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था, उनके ऊपर सिर्फ यह आरोप लगा था कि उनकी पत्नी सुनंद पुष्कर ने आईपीएल फ्रेंचाइजी के शेयरों में अनुचित लाभ प्राप्त किया है। यूपीए-1 में ही कानून मंत्री रहे सलमान खुर्शीद की पत्नी लुइस खुर्शीद पर आरोप लगा था कि उनके एनजीओ को विकलांगों के नाम पर मिले सरकारी धन में हेराफेरी की गई है। इस आरोप के बाद सलमान खुर्शीद को कानून मंत्रालय से हटाकर विदेश मंत्रालय का मंत्री बना दिया गया था। अब चाहे छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री यह जानते हों कि उनकी पत्नी परीक्षा दे रही थी या फिर इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। यह कहने से कोई फायदा नहीं है। अब तो उन्हें अपनी नैतिकता का प्रदर्शन करना चाहिए। इस बात का निर्णय केदार कश्यप स्वयं करे कि ऐसी दशा में समाज के सामने उन्हें क्या सफाई देनी है और खुद को कैसे दंडित करना है। अंत में सिर्फ इतना और बात खत्म-
मै ही खुद ही गुनहगार हूँ
अपनी बरबादियों का
न मै मोहब्बत करता न वो बेवफा होती

Sunday 14 June 2015

भारतीय राजनीति और मोदी ‘योग’ के सूत्र

संयुक्त राष्ट्र सभा और संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाए जाने की मंजूरी दे दी है। अब 21 जून को विश्व के कई देशों खासकर अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसों देशों में एक साथ योग करने की तैयारी कर रखी है। इसके पीछे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को श्रेय दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सभा में इसका प्रस्ताव रखा था। भारत में 21 जून को होने वाले योग को गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड में दर्ज कराए जाने की तैयारी चल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का खास फोकस इस बिन्दु पर है। देश के भाजपा शासित राज्यों में भी योग दिवस को ऐतिहासिक बनाने की तैयारी जोरों पर चल रही है। प्रधानमंत्री लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को योग के फायदे बताने की कोशिश कर रहे हैं। वह योग को सीधे शारीरिक स्वास्थ्य से जोड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री चाहे जितनी सफाई दें पर राजनीतिक विश्लेषक इस बहाने नरेन्द्र मोदी की जन-जन तक राजनीतिक पैठ बनाए जाने की दिशा में बढ़ता एक मजबूत कदम के रुप में देख रहे हैं। शायद इसी वजह से विपक्ष के नेताओं द्वारा इसकी कहीं-कहीं मुखालफत भी की जा रही है। मोदी के इस कदम को योग के जरिए भारतीय राजनीति में पकड़ मजबूत करने के एक सूत्र के रुप में देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि भारतीय संस्कृति से जुड़ा व्यक्ति नरेन्द्र मोदी के इस कदम से कहीं न कहीं उनसे जरूर प्रभावित होगा। नरेन्द्र मोदी के इस कदम से देश के हर युवा में उनकी अपनी अलग तरह की छवि उभरकर सामने आएगी। या यूं सीधे कहा जाए तो देश के युवा वर्ग का एक बड़ा तबका सीधे योग के जरिए नरेन्द्र मोदी से जुड़ जाएगा। उनके इस कदम के परिणाम क्या होंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर तात्कालिक तौर पर मोदी के इस कदम से राजनीति करने वाले विपक्षियों में बौखलाहट बढ़ी है। योग की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ जोड़ना है। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है-जोड़ और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा। योग का अर्थ परमात्मा से मिलन भी है। भारत के छह दर्शनों में से एक है योग। ये छह दर्शन हैं- 1.न्याय 2.वैशेषिक 3.मीमांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग। योग के माध्यम से शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ्य किया जा सकता है। तीनो के स्वस्थ्य रहने से आत्मा स्वत: की स्वस्थ महसूस करती है। लंबी आयु, सिद्धि और समाधि के लिए योग किया जाता रहा है।
संघ के सामने दिखने लगा संकट
संघ के सामने का संकट दिखने लगा है कि योग और युवाओं के जरिये अगर बाबा रामदेव का विस्तार होता चला गया, तो संघ के स्वयंसेवक भी एक वक्त के बाद बाबा रामदेव के साथ चले जायेंगे। क्योंकि स्वाभिमान ट्रस्ट के साथ जुड़े युवाओं को रोजगार मिलता है, जबकि संघ के स्वयंसेवक के तौर पर सेवा करने के एवज में कोई सहूलियत संघ अभी भी नहीं दे पाता है। यही वजह है कि उत्तराखंड के कई युवा स्वयंसेवक बाबा रामदेव के साथ जुड़ गये। दरअसल, मोदी सरकार यह भी समझ रही है कि अगर देशभर के युवा एक छतरी तले आ जायें, तो फिर विकास की जिस अवधारणा को लेकर वह देश में नयी लकीर खींचना चाह रही है, उसे खींचने में भी आसानी होगी। उसके बाद विवेकानंद के साथ दीनदयाल उपाध्याय के बारे में भी देश भर के छात्र-छात्राएं जानें, इस दिशा में भी काम होगा।
रामदेव के शिष्य सत्यवान को मिला महत्व 
21 जून के अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए 35 पेज की जो पुस्तिका निकाली जा रही है, उसमें योग और भारतीय संस्कृति के उन्हीं बिंदुओं का जिक्र किया गया है, जिनका जिक्र बाबा रामदेव पतंजलि के तहत करते रहे हैं। इसीलिए 21 जून को बाबा रामदेव ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में जब अपने योग कार्यक्रम के लिए जगह मांगी, तो उन्हें यह कह कर जगह नहीं दी गयी कि सुरक्षा का संकट पैदा हो जायेगा। फिर इसी के समानांतर बाबा रामदेव के दूसरे शिष्य सत्यवान को महत्व देना शुरू कर दिया। अब आलम यह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने रामदेव के शिष्य सत्यवान से पीएमओ में मुलाकात की और अब संघ समर्थित सुदर्शन चैनल पर भी सत्यवान के योग कार्यक्रम वैसे ही शुरू हो गये हैं, जैसे कभी बाबा रामदेव के शुरू हुए थे। यानी पहली बार संघ ही नहीं, सरकार भी इस सच को समझ रही है कि अगर देशभर के युवा, योग और भगत सिंह के नाम पर जुड़ते चले गये, तो फिर राजनीतिक तौर पर भी वैचारिक जमीन खुद-ब-खुद तैयार होती चली जायेगी।
योग सभी धर्मों का महत्वपूर्ण अंग 
योग सभी धर्मों का महत्वपूर्ण अंग है। यह बात अलग है कि हर धर्म में इसे अलग-अलग रूप से स्वीकार्य किया गया है। वेद, पुराण आदि ग्रन्थों में योग के अनेक प्रकार बताए गए हैं। भगवान कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं-ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग। जबकि योग प्रदीप में योग के दस प्रकार बताए गए हैं-1.राज योग, 2.अष्टांग योग, 3.हठ योग, 4.लय योग, 5.ध्यान योग, 6.भक्ति योग, 7.क्रिया योग, 8.मंत्र योग, 9.कर्म योग और 10.ज्ञान योग। इसके अलावा होते हैं-धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग आदि।
आष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन
आष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। इसका सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। यह आठ अंग सभी धर्मों का सार है। उक्त आठ अंगों से बाहर धर्म, योग, दर्शन, मनोविज्ञान आदि तत्वों की कल्पना नहीं की जा सकती। यह आठ अंग हैं-(1)यम (2)नियम (3)आसन (4)प्राणायम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7)ध्यान और (8)समाधि। उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान। योग को प्रथम यम से ही सिखना होता है।
यम- सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।
नियम- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान।
आसन- आसनों के अनेक प्रकार हैं। आसन के संबंध में हठयोग प्रदीपिका, घरेण्ड संहिता तथा योगाशिखोपनिषद् में विस्तार से वर्णन मिलता है।
प्राणायाम- नाड़ी शोधन और जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायम के भी अनेकों प्रकार हैं।
प्रत्याहार- इंद्रियों को विषयों से हटाकर अंतरमुख करने का नाम ही प्रत्याहार है।
धारणा- चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
ध्यान- ध्यान का अर्थ है सदा जाग्रत या साक्षी भाव में रहना अर्थात भूत और भविष्य की कल्पना तथा विचार से परे पूर्णत: वर्तमान में जीना।
समाधि- समाधि के दो प्रकार है- संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात। समाधि मोक्ष है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सात कदम क्रमश: चलना होता है।
योग का संक्षिप्त इतिहास 
योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ। दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।
5000 वर्ष पहले भारत में हुई योग की उत्पत्ति
भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरूआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने ‘सिंधु सरस्वती सभ्यता’ को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है। वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा। योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- योगसूत्र। योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ पर अब तक हजारों भाष्य लिखे गए हैं, लेकिन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख लिखते हैं। व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूर्व का माना जाता है। महर्षि पतंजलि का ग्रंथ योग सूत्र योग की सभी विद्याओं का ठीक-ठीक संग्रह माना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के ‘व्यास भाष्य’ को योग सूत्र पर लिखा प्रथम प्रामाणिक भाष्य माना जाता है। व्यास द्वारा महर्षि पतंजलि के योग सूत्र पर दी गई विस्तृत लेकिन सुव्यवस्थित व्याख्या। पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रामाणिक व्याख्याकार के रूप में वाचस्पति मिश्र का ‘तत्त्ववैशारदी’ प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पश्चात माना जाता है। विज्ञानभिक्षु का समय विद्वानों के द्वारा 16वीं शताब्दी के मध्य में माना जाता है। योगसूत्र पर महत्वपूर्ण व्याख्या विज्ञानभिक्षु की प्राप्त होती है जिसका नाम ‘योगवार्तिक’ है। भोज के राज्य का समय 1075-1110 विक्रम संवत माना जाता है। धरेश्वर भोज के नाम से प्रसिद्ध व्यक्ति ने योग सूत्र पर जो भोजवृत्ति नामक ग्रंथ लिखा है वह भोजवृत्ति योगविद्वजनों के बीच समादरणीय एवं प्रसिद्ध माना जाता है। कुछ इतिहासकार इसे 16वीं सदी का ग्रंथ मानते हैं।

Tuesday 2 June 2015

दिल्ली सरकार और जासूसी सेल

दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिसकी उम्मीद थी, हो वही रहा है। बल्कि यूं कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उम्मीद से भी अधिक हो रहा है। ज्यादातर लोगों को उम्मीद थी कि अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बनने के बाद काम कम करेंगे और सुर्खियों में रहने की कोशिश ज्यादा करेंगे क्योंकि यह उनके शगल में शामिल है। पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बाद भी आए दिन सुर्खियों में रहने के लिए तरह-तरह की नौटंकी करते रहते हैं। कभी बजट बनाने के लिए आम लोगों की राय लेने के नाम पर तो कभी खुले में कैबिनेट की बैठक करने के नाम पर आम जनमानस में भ्रम की बात छोड़ते रहते हैं। दिल्ली में ने बलात्कार की घटनाएं कम हो रही है, न बिजली पानी की समस्या दूर हो रही है और न ही करप्शन कम होने का नाम ले रहा है। दिल्ली सरकार के ऐंटी करप्शन ब्यूरो के लिए करोड़ों रुपये के उपकरण खरीदने का विवाद अभी थमा नहीं है कि सरकार ने एक और कदम आगे बढ़कर अपने सभी विभागों की ‘जासूसी’ कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए एक स्पेशल सेल बनाई जा रही है, जिसमें करीब 25 टीमें विभिन्न विभागों के कार्यकलापों की ‘निगरानी’ करेंगी। इसके लिए करीब 25 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। दिल्ली सरकार के सूत्रों के अनुसार इस योजना के लिए गृह विभाग ने एक नोट तैयार कर लिया है, जिसे दिल्ली सरकार की आगामी कैबिनेट की बैठक में पेश किया जाएगा। विभाग ने जो नोट तैयार किया है उसमें दिल्ली सरकार के सभी विभागों के कार्यकलापों की जांच के लिए ‘निगरानी और मूल्यांकन सेल’ बनाने का निर्णय लिया है। ये सेल सभी विभागों के प्रॉजेक्ट, स्कीम, प्रोग्राम के अलावा उनके विभिन्न कार्यक्रमों की भी निगरानी करेगी। यह देखेगी कि इस मामले में कहां ढील बरती जा रही है और कहां सरकारी धनराशि का दुरुपयोग किया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि इस सेल के अंतर्गत करीब 180 लोगों की टीम बनाने का निर्णय लिया गया है, जिसमें अलग-अलग 25 टीमें होंगी। हर टीम में सात अधिकारी होंगे, जिनमें से पांच को फील्ड स्टाफ के रूप में तैयार किया जाएगा। इस सेल में पांच डायरेक्टर होंगे और उसका मुखिया प्रॉजेक्ट डायरेक्टर होगा। इस सेल का बजट 20 करोड़ रुपये रखा गया है, जिसमें से उनकी स्टाफ की सैलरी पर करीब सात करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस बजट को बढ़ाया भी जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि वैसे तो विभिन्न सरकारी विभागों के कामकाज की समीक्षा के लिए पहले से ही विजिलेंस, प्लानिंग, फाइनैंस व आॅडिट विभाग मौजूद हैं। लेकिन सरकार चाहती है कि उसके विभागों पर गंभीरता से निगरानी रखी जा सके, ताकि जन हित से जुड़ी योजनाओं आदि को समय पर पूरा किया जा सके।

Wednesday 29 April 2015

नेपाल की त्रासदी से सबक लेना जरूरी

नेपाल में भूकंप की त्रासदी विभीषिका का एक भयानक दृश्य ही नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी भी है। प्राकृतिक आपदाओं पर मनुष्य का वश नहीं है, पर संभावित तबाही के असर को कम किया जा सकता है। समूचा भारत भूकंप-संभावित क्षेत्र है, करीब 60 फीसदी अधिक खतरे के दायरे में आता है, जिसमें देश के 38 शहर शामिल हैं। 2006 में गृह मंत्रलय के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, इन शहरों में ज्यादातर निर्माण भूकंप-रोधी नहीं हैं, इसलिए भूकंप की स्थिति में ये भवन किसी भयावह बर्बादी का शिकार बन सकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि दिल्ली में 80 फीसदी भवन तीव्र भूकंप का झटका बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे। जब देश की राजधानी में हालात ऐसे हैं, तो अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है कि अन्य शहरों की दशा क्या है। दिल्ली के अलावा श्रीनगर, गुवाहाटी, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे प्रमुख शहर भी संभावित खतरे वाले जोन में हैं। देश में शहरीकरण की तेज रफ्तार और विकास की अंधी दौड़ ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। महानगरों से कस्बों तक आबादी का घनत्व तेजी से बढ़ रहा है। इस वजह से तंग गलियों में भी रिहायशी और व्यावसायिक बहुमंजिली इमारतें धड़ल्ले से बन रही हैं, जहां  से आपदा के वक्त निकलना संभव नहीं। भारतीय मानक ब्यूरो ने 1962 में पहली बार भूकंप-रोधी निर्माण का दिशा-निर्देश जारी किया था, जिसे आखिरी बार 2005 में संशोधित किया था। लेकिन इन निर्देशों के बारे में जागरूकता न के बराबर है तथा निर्माण में संलग्न संस्थाएं इसके प्रति बेपरवाह हैं। अनधिकृत कॉलोनियों को छोड़ दें, सरकार और निजी कंपनियों द्वारा बनाये भवनों में भी ब्यूरो के निर्देशों की अवहेलना की जाती है। प्रशासन की लापरवाही और  भ्रष्टाचार के कारण निर्माण कंपनियां सुरक्षा मानदंडों की खुलेआम अनदेखी करती हैं। मोटी कमाई के लालच में बिल्डर न सिर्फ भूकंप-रोधी मानदंडों को नजरअंदाज करते हैं, बल्कि अन्य सुरक्षा तैयारियों को लेकर भी बेपरवाह होते हैं। लाखों नागरिको की जान जोखिम में डालने वाले इस आपराधिक कृत्य में अधिकारी और राजनेता बराबर के शरीक हैं। जरूरी है कि बहुमंजिली इमारतों की कड़ाई से जांच की जाये और सुरक्षा मानदंडों की अनदेखी करनेवालों पर ठोस कार्रवाई हो।

Sunday 26 April 2015

भूकंप क्यों आते हैं, कैसे इस खतरे से बचें!

देश में जब भूकंप आने की खबरें आती हैं तो मन में एक सवाल कौंध जाता है कि आखिर क्यों आता है भूकंप? इसका उत्तर जानने के लिए हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा। पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेटें इसी लावे पर तैर रही हैं और इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है जिसे भूकंप कहते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर ये प्लेटें क्यों टकराती हैं? दरअसल ये प्लेंटे बेहद धीरे-धीरे घूमती रहती हैं। इस प्रकार ये हर साल 4-5 मिमी अपने स्थान से खिसक जाती हैं। कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। ऐसे में कभी-कभी ये टकरा भी जाती हैं। ये प्लेटें सतह से करीब 30-50 किमी तक नीचे हैं। भूकंप का केंद्र वह स्थान होता है जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा। मतलब साफ है कि हलचल कितनी गहराई पर हुई है। भूकंप की गहराई जितनी ज्यादा होगी सतह पर उसकी तीव्रता उतनी ही कम महसूस होगी। मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या भारत को भूकंप का सर्वाधिक खतरा है? इसके जवाब में हम पाते हैं कि इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है। यह पाकिस्तान बार्डर से सिर्फ टच करती है। यह हिमालय के दक्षिण में है। जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है। इंडियन प्लेट उत्तर-पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट जिसमें चीन आदि बसे हैं कि तरफ बढ़ रही है। यदि ये प्लेट टकराती हैं तो भूकंप का केंद्र भारत में होगा। भूंकप के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है। जोन दो-दक्षिण भारतीय क्षेत्र जो सबसे कम खतरे वाले हैं। जोन तीन-मध्य भारत, जोन चार-दिल्ली समेत उत्तर भारत का तराई क्षेत्र, जोन पांच-हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ। जोन पांच सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं। देश में भूकंप माइक्रोजोनिंग का कार्य शुरू किया गया है। इसमें क्षेत्रवार जमीन की संरचना आदि के हिसाब से जोनों के भीतर भी क्षेत्रों को भूकंप के खतरों के हिसाब से तीन माइक्रोजोन में विभाजित किया जाता है। दिल्ली, बेंगलूर समेत कई शहरों की ऐसी माइक्रोजोनिंग हो चुकी है। कम खतरे वाले क्षेत्र-दिल्ली रिज क्षेत्र, मध्यम खतरे वाले क्षेत्र-दक्षिण पश्चिम, उत्तर पश्चिम और पश्चिमी इलाका, ज्यादा खतरे वाले-उत्तर, उत्तर पूर्व, पूर्वी क्षेत्र। भूंकप की जांच रिक्टर स्केल से होती है। भूकंप के दौरान धरती के भीतर से जो ऊर्जा निकलती है, उसकी तीव्रता को इससे मापा जाता है। इसी तीव्रता से भूकंप के झटके की भयावहता का अंदाजा होता है। रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकंपों को हल्का माना जाता है। साल में करीब 6000 ऐसे भूकंप आते हैं। जबकि 2 या इससे कम तीव्रता वाले भूकंपों को रिकार्ड करना भी मुश्किल होता है तथा उनके झटके महसूस भी नहीं किए जाते हैं। ऐसे भूकंप साल में 8000 से भी ज्यादा आते हैं। रिक्टर स्केल पर 5-5.9 के भूकंप मध्यम दर्जे के होते हैं तथा प्रतिवर्ष 800 झटके लगते हैं। जबकि 6-6.9 तीव्रता के तक के भूकंप बड़े माने जाते हैं तथा साल में 120 बार आते हैं। 7-7.9 तीव्रता के भूकंप साल में 18 आते हैं। जबकि 8-8.9 तीव्रता के भूकंप साल में एक आ सकता है। इससे बड़े भूकंप 20 साल में एक बार आने की आशंका रहती है। रिक्टर स्केल पर आमतौर पर 5 तक की तीव्रता वाले भूकंप खतरनाक नहीं होते हैं। लेकिन यह क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। यदि भूकंप का केंद्र नदी का तट पर हो और वहां भूकंपरोधी तकनीक के बगैर ऊंची इमारतें बनी हों तो 5 की तीव्रता वाला भूकंप भी खतरनाक हो सकता है। 8.5 वाला भूकंप 7.5 वाले भूकंप से करीब 30 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है। भूकंप के खतरे से कैसे बचा जा सकता है। इस पर विचार करना जरुरी है। हमें यह निर्धारित करना होगा कि नए घरों को भूकंप रोधी बनाएं। जिस स्थान पर घर बना रहे हैं उसकी जांच करा लें कि वहां जमीन की संरचना भूकंप के लिहाज से मजबूत है या नहीं।

Tuesday 7 April 2015

उनकी मौत भी हमारे ‘जिल्ले इलाही’ को जगा नहीं पा रही

खुदा तो सिर्फ जीवन देता है, पालन-पोषण तो किसान करता है। दुनिया को पालने वाले किसान मौत को गले लगा रहे हैं और हम डिनर पर टीवी के सामने बैठकर क्रिकेट के छक्कों पर ताली बजा रहे हैं। हम टीवी फोड़ देते हैं, बरतन तोड़ देते हैं, सोशल साइट्स पर अनसोशल हो जाते हैं, हमारी देशभक्ति जोर मारने लगती जब हमारी टीम हार जाती है। लेकिन हमारा खून नहीं खौलता जब हमें डिनर कराने वाला जिन्दगी की जंग हार जाता है। हमारा अन्नदाता जब फांसी के फंदे को अपने गले का हार बना लेता है, हम चुप रहते हैं, फिर भी हम संवेदनशील कहे जाते हैं, कथित सभ्य भी। जिसने सबको बनाया और जो मौत और तकदीर पर नियंत्रण रखता है, उस खुदा को भी उस वक्त खून के आंसू निकल आते होंगे जब अन्नदाता काल के गाल में समा जाता है। भारत कृषि प्रधान देश है, किसान हमारे अन्नदाता हैं। इन सारे जुमलों को सुनकर अब हंसी छूट जाती है। गुस्सा आता है। खून खौलता है। सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है, कभी देखा है पत्थर पे भी कोई बेल लगती है। कोई भी अंदरूनी गंदगी बाहर नहीं होती, हमें इस हुकूमत की भी किडनी फेल लगती है। सरकार में राज्य से लेकर केंद्र तक को देखें, इसे अलहदा ना समझें क्योंकि सत्ता का स्वरूप एक ही होता है। बेमौसम हुई बारिश के बाद जम्हूरियत की आंखें उम्मीदबर हैं और दिल बेचैन। जुबां खामोश हैं, पर जेहन में सवालों का शोर। बेमौसम बारिश और ओलों से यूपी से लेकर एमपी तक में किसान मौत को गले लगा रहे हैं लेकिन उनकी मौत भी हमारे ‘जिल्ले इलाही’ को जगा नहीं पा रही है। किसानों का इरादा जख्मों पर मरहम लगाने का है, लोग भी हर तरह ‘साहेब’ के मुंह से इमदाद सुनने को बेसब्र हैं। अपने उघड़े जख्मों पर मरहम लगाने की उम्मीद लगा रहे हैं, दवा तो नसीब नहीं हुई लेकिन मध्य प्रदेश के कलेक्टर साहेब ने उस पर नमक जरूर रगड़ दिया। डीएम साहेब आॅडियो स्टिंग में कह रहे हैं, हम तो तंग आ गए हैं रोज-रोज की.....जो मरेगा इसी की वजह से मरेगा क्या... इतने बच्चे पैदा किए तो टेंशन से प्राण तो निकलेंगे ही...पांच-पांच, छह-छह छोरा-छोरी पैदा कर लेते हैं...और आत्महत्या कर हमको बदनाम करते हैं..। ये टेक्नोलॉजी है कि साहेब पकड़े गए। वैसे कमोबेश हम सूबे के साहेब की यही सोच है। मन की बात के जरिए जम्हूरियत से सीधे संवाद कर रहे हैं हमारे जिल्ले इलाही लेकिन उनतक हमारे मन की बात को कौन बताए। जब बीच वाले साहेब की सोच यही है। प्रधानमंत्री ने कॉरपोरेट को सुरक्षा देने के लिए अपनी पूरी ‘स्किल’ लगा दी है। पूंजीपतियों ने इसे अपने ‘स्केल’ पर खूब सराहा है। किसानों के मरने की ‘स्पीड’ वैसे ही बनी हुई है। किसान मरता है तो मरने दो। बस गाय बचा लो। गाय धर्म है, वोट है, फिर सत्ता में आने का जरिया है। किसानों की मौत से संसद का सीना ‘दु:ख और दर्द से छलनी हो जाय’ यह हादसा क्यों नहीं होता! किसानों के जज्बात को, इज्जत से जिन्दा रहने की जिद को नए रास्ते क्यों नहीं मिलते, अभी तक मैं समझ नहीं पाया। मेरे बाबा जी अक्सर कहा करते थे कि उत्तम खेती, मध्यम बान, निखिद चाकरी भीख निदान. पूर्वांचल के लोग इस कहावत को अच्छी तरह से समझ जाएंगे। फिर ऐसा क्या हुआ कि सबका ‘दाता’ भिखारी बनता गया। मुल्क के हुक्मरानों को न केवल इस गहराती गई त्रासदी का पता था बल्कि काफी हद तक वे ही इसके लिए जिम्मेदार भी थे। इतनी बड़ी आबादी के खेती पर निर्भर होने के बावजूद किसानों को लेकर केवल राजनीतिक रोटियां सेंकी गईं, क्योंकि परिणाम नीति और नीयत की पोल खोल देते हैं। मुझे घिन आती है उस देश की व्यवस्था पर जिसके गोदामों में अरबों का अनाज सड़ जाता है पर सरकार भुखमरी के शिकार लोगों में वितरित नहीं करती? साहेब कोई किसान यूं ही नहीं मरता। उसे मरने पर मजबूर करती है आपकी व्यवस्था, उसे मारता है बेटी की डोली न उठ पाने का दर्द, उसे मारता है अपने बच्चे को रोटी नहीं दे पाने की कसक, उसे मारती है अपने दुधमुंहे बच्चे को दूध देने के लिए बनिये की दुकान पर मंगलसूत्र रखने को मां की मजबूरी, उसे मारती है हमारी और आपकी चुप्पी।

Thursday 2 April 2015

सोनिया पर गिरिराज की टिप्पणी अकारण नहीं

1 अप्रैल 2015 को बिहार के हाजीपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में बीजेपी के नेता व मोदी कैबिनेट के मंत्री गिरिराज सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर नस्ली टिप्पणी की। गिरिराज का टिप्पणी क्या करना, देश की राजनीति गरमा गई। कांग्रेस और मोदी सरकार के विपक्षी अन्य सभी दलों के नेताओं ने मोदी सरकार पर हमला बोलना तेज कर दिया। बात इतनी बढ़ गयी कि गिरिराज सिंह को माफी मांगना पड़ा और भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने दूरभाष पर फटकार भी लगाई। यह घटना बेंगलुरु में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने से ठीक दो दिन पहले की है। ऐसे में यह सोचना समीचीन है कि आखिर गिरिराज सिंह ने सोनिया पर ऐसी टिप्पणी क्यों की। सोनिया पर भाजपा की ओर से इस तरह की टिप्पणी पहली बार  नहीं बल्कि समय-समय पर की जाती रहती है। ऐसे में यह दिखता है कि गिरिराज ने यह टिप्पणी अकारण नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत की है। 20 अप्रैल से मोदी सरकार बजट सत्र शुरु होने जा रहा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराना मोदी सरकार ने अपनी प्रतिष्ठा बना लिया है। पिछली बार राज्यसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित नहीं हो सका तो कैबिनेट की बैठक में फिर नौ संशोधनों के साथ नए भूमि अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी दे दी गई है। लोकसभा में यह विधेयक पास हो जाएगा, पर राज्यसभा में फिर दिक्कत आएगी। इस मुद्दे को लेकर कुछ किसान संगठन, अन्ना हजारे और कांग्रेस ने आन्दोलन छेड़ रखा है। जनता का ध्यान भी कमोवेश इसी मुद्दे पर केन्द्रित हो रहा था, क्योंकि वर्तमान में इसके अलावा कोई अन्य मुद्दा चर्चा में नहीं रहा। अब अचानक गिरिराज सिंह ने ऐसा नया मुद्दा कांग्रेस के हाथ में पकड़ा दिया है कि कुछ दिनों तक कांग्रेसी अब इसी मुद्दे पर केन्दित रहेंगे। ऐसे में देश की जनता का मूड भी इस मुद्दे से दूसरे मुद्दे की ओर चला गया।

Monday 30 March 2015

‘आप’ तो ऐसे ना थे जनाब

दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद ने जितने नारे दिए आज वो सब ’जुमले’ साबित हो रहे हैं। आप के नारे  उलटा उसी पर तंज कस रहे हैं। दूसरी पार्टियों के जिस ‘राजनीतिक चरित्र’ पर आप हमला करती रही वे सब आज आम आदमी पार्टी पर फिट हो रहे हैं। सरकार बनाने के दो महीनों के भीतर ही आप में जो घमासान मचा है वह न केवल जनता के लिए बल्कि आप को दूर से ही समर्थन दे रहे लोगों को भी ठेस पहुंचाने वाला है। जो अरविंद केजरीवाल दूसरी पार्टी के नेताओं को मंचों से डिबेट के लिए ललकारते थे वो आज मीडिया से दूरी बना रहे हैं। पार्टी के भीतर-बाहर इतना हो-हल्ला मचता रहा लेकिन अरविंद केजरीवाल ने मीडिया के सामने आकर एक बार भी इस मसले पर सही तरीके से प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं समझी। रविवार को हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास का हटा दिया गया। एक दिन पहले शनिवार को हुई नेशनल काउंसिल की बैठक के बाद स्थिति इस कदर बिगड़ गई कि अब पूरे विवाद पर किसी की सफाई की जरूरत तक नहीं बची है। लोकपाल का बैनर लिए जो आम आदमी पार्टी राजनीति में आई आज वह खुद ही अपनी पार्टी के आंतरिक लोकपाल को भूल गई। योगेंद्र यादव का कहना है कि आप नेताओं ने नेशनल काउंसिल की बैठक में आंतरिक लोकपाल रामदास को नहीं आने दिया। क्या पार्टी का इतनी जल्दी लोकपाल की अवधारणा से भरोसा उठ गया। आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी का तानाशाही रवैया भी जनता के सामने खुलकर आ गया। ‘इंसान का हो इंसान से भाईचारा’ गीत गाने वाले केजरीवाल की पार्टी का ‘भाईचारा’ भी जनता से खूब देखा। बैठक और पार्टी के आंतरिक मसलों पर जनता से राय मांगने का दिखावा करने वाली आम आदमी पार्टी ने आखिर क्यों आज टीवी समाचार चैनलों के प्रतिनिधियों को बैठकस्थल के भीतर नहीं जाने दिया। बेहतर होता कि आज जनता देखती कि आखिर किस प्रक्रिया के तहत पार्टी ने अपने चार वरिष्ठ नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने जितने संगीन आरोप अरविंद केजरीवाल और उनके गुट के नेताओं पर लगाए हैं, अगर वे सच साबित होते हैं तो यह न केवल आप कार्यकर्तार्ओं के साथ बल्कि दिल्ली और देश की उस जनता के साथ बड़ा धोखा होगा जिसने आप के उदय को ‘नई किस्म की राजनीति’ की शुरूआत समझा था। आम आदमी पार्टी के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह इस संकट से कैसे उबर पाती है और जनता के भरोसे का टूटने से कैसे बचाती है।

Saturday 21 March 2015

बुलेट ट्रेन के सपने से पहले बदहाल ‘सूरत’ बदलनी होगी

प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने देश के लोगों को बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया। युवा पीढ़ी के लिए यह खुशी की बात रही। चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी के मन में यह कसक दिखाई दे रही थी कि वह जैसे ही प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर आसीन होंगे, वैसे ही देश की सड़ी-गली व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन दिखने लगेगा। यह सपना सच भी हो सकता है, या फिर केवल सपना ही बनकर रह सकता है। इसके लिए अभी कुछ वक्त का इंतजार है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दस माह का समय धीरे-धीरे गुजर गया। उन्होंने अपनी पहली सरकार का आम बजट और रेल बजट भी संसद में पेश कर दिया। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के दौरान नरेन्द्र मोदी ने अपनी कैबिनेट में सदानंद गौड़ा को रेल मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी सौंपी थी, पर कुछ महीने के बाद ही उन्होंने सदानंद गौड़ा से रेल मंत्रालय वापस लेकर अपने भरोसेमंद साथी सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बना दिया। प्रधानमंत्री ने सुरेश प्रभु की खूब तारीफ भी की थी। ऐसा लगा था कि सुरेश प्रभु कुछ ऐसा करेंगे कि रेलवे की पुरानी व्यवस्थाओं में व्यावहारिक बदलाव होगा और सामयिक परिवर्तन हो सकेगा। रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती रेलगाड़ियों को दुर्घटना से बचाना है। दूसरी चुनौती रेल में यात्रा कर रहे यात्रियों को सुरक्षित उनके गन्तव्य तक पहुंचाना है। पर इन दोनों चुनौतियों का सामना कर पाने में सुरेश प्रभु कहीं न कहीं फेल साबित हो रहे हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी अगर जिम्मेदार ठहराया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए। 26 मई 2016 को नरेन्द्र मोदी जिस दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उसी दिन उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में दिल्ली गोरखपुर एक्सप्रेस ट्रेन मालगाड़ी से टकरा गई थी। इस हादसे में 30 यात्रियों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इसके बाद महीने भर का भी समय नहीं व्यतीत हुआ था कि 25 जून 2014 को बिहार के छपरा के पास डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई। इस हादसे में भी पांच लोगों की मौत हुई थी। एक अक्टूबर 2014 को फिर उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले के पास कृषक एक्सप्रेस और लखनऊ-बरौनी एक्सप्रेस के बीच टक्कर हो गई। टक्कर में 12 लोग मारे गए और 45 लोग घायल हुए। 16 दिसंबर 2014 को बिहार में नवादा जिले के वारिसअलीगंज रेलवे स्टेशन के समीप एक मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर एक एक्सप्रेस ट्रेन से एक बोलेरो की टक्कर हो गई। इसमें पांच लोगों की मौत हो गई और तीन अन्य लोग घायल हो गए। 13 फरवरी 2015 को बेंगलुरु से एर्नाकुलम जा रही एक एक्सप्रेस ट्रेन की आठ बोगियां होसुर के समीप पटरी से उतर गईं। इसमें दस लोगों की मौत हो गयी व 150 यात्री घायल हो गए। 16 मार्च 2015 को दिल्ली से चेन्नई जा रही तमिलनाडु एक्सप्रेस के एक डिब्बे में नेल्लोर के समीप शॉर्ट सर्किट होने की वजह से आग लग गयी, इस हादसे में कम से कम 47 यात्रियों की जल कर मौत हो गई थी।  28 यात्री बुरी तरह झुलस गये थे। डिब्बे में शौचालय के समीप शॉर्ट सर्किट हुआ था। 20 मार्च 2015 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में बछरावां रेलवे स्टेशन के निकट देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस ब्रेक फेल हो जाने से पटरी से उतर गई। इस हादसे में 40 से अधिक यात्रियों की मौत हो गयी और 150 से अधिक लोग घायल हो गए। यह केवल वह घटनाएं हैं, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में घटित हुई हैं। दूसरी चुनौती के रुप में यात्रियों को गन्तव्य तक सुरक्षित यात्रा करा पाने में भी रेलवे पूरी तरह से नाकाम नजर आ रहा है। 2 जून 2014 को ऊधमसिंह नगर जिले में मनचले युवकों ने तीन छात्राओं से छेड़छाड़ की। एक छात्रा के भाई ने इसका विरोध किया तो मनचलों ने उसका सिर फोड़ दिया। इस पर एक छात्रा ने बीच-बचाव करने की कोशिश की तो उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया। 3 जून 2014 को उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में लालकुआं बरेली पैसेन्जर ट्रेन में यात्रा कर रही तीन छात्राओं का अपहरण करने की कोशिश की गई। छात्राओं ने इसका प्रतिरोध किया तो बदमाशों ने एक छात्रा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। 28 जून 2014 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में गया-मुगलसराय रेलखंड पर अनुग्रह नारायण रोड व फेसर स्टेशन के बीच इंटर की एक छात्रा के साथ बदमाशों ने लूट करने की कोशिश की। उसने इसका विरोध किया तो बदमाशों ने उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। 19 नवंबर 2014 को कानपुर की रहने वाली छात्रा ऋतु त्रिपाठी दिल्ली से मालवा एक्सप्रेस की स्लीपर कोच एस-7 पर सवार होकर महाकाल बाबा का दर्शन करने के लिए उज्जैन जा रही थी। रात में करीब दो बजे बदमाशों ने ऋतु का पर्स लेकर भागने की कोशिश की। इसका आभास होने पर ऋतु ने विरोध किया तो बदमाशों ने उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। उत्तर  प्रदेश के बरेली जिले में ही लालकुआं-बरेली पैसेन्जर ट्रेन में 24 फरवरी 2015 को फिर बदमाशों ने बैंककर्मी मनप्रीत के साथ लूट की कोशिश की। उन्होंने इसका विरोध किया तो बदमाशों ने डंडे से प्रहार कर उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। 18 मार्च 2015 को जबलपुर निजामुद्दीन एक्सप्रेस के एसी कोच में सफर कर रहे मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया और उनकी पत्नी सुधा मलैया को मथुरा के पास बदमाशों ने चलती ट्रेन पर लूट लिया। सुधा मलैया ने इस बात की शिकायत खुद रेल मंत्री सुरेश प्रभु से मिलकर की थी। इसके एक दिन पहले छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में भी बदमाशों ने लूटपाट की घटना को अंजाम दिया था। 19 मार्च 2015 की रात विशाखापट्टनम एक्सप्रेस ट्रेन पर यात्रा कर रहीं सुनीता जैन मध्य प्रदेश के उमरिया स्टेशन से पहले लूटेरों का शिकार हो गर्इं। घटना रात 11 बजे ही है बैग लेकर भाग रहे बदमाशों का उन्होंने पीछा किया तो बदमाशों ने उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। मैंने उन्हीं घटनाओं को जिक्र किया है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के कार्यकाल में ही हुई हैं। ट्रेनों में लगातार घट रही इस तरह की घटनाएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश में सुशासन लाने के नारे को मुंह चिढ़ा रही हैं। इस घटनाओं को रोका जा सकता है, बशर्ते इसके लिए महज भाषणबाजी करने के बजाय कुछ काम किया जाए। रेल मंत्री सुरेश प्रभु में यह इच्छाशक्ति नहीं दिखाई देती है। रेल मंत्री बेशक अच्छी योजनाएं तैयार कर सकते हैं। रेलवे को रुपए से मालामाल कर सकते हैं, पर इस बदहाल सूरत को सुधारने में एक कदम भी वह सफल नजर नहीं आ रहे हैं। सोचिए उन परिवार के सदस्यों की क्या हालत होगी, जिनके घर के लोग ट्रेन हादसे का शिकार हो जाते हैं। देश में बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहल करके रेलवे की इस बदहाल सूरत के साथ ही उसकी सीरत भी बदलनी होगी।
                                                    

Sunday 15 March 2015

अखिलेश सरकार का न कोई ‘विजन’ न विकास की ‘मंशा’

15 मार्च 2015 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार के तीन वर्ष पूरे हो गए। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अब दो वर्ष से कम का समय शेष रह गया है। अखिलेश यादव की सरकार की तीसरी वर्षगांठ का यह दिन उत्तर प्रदेश की इन वर्षों में विकास यात्रा का अवलोकन करने का सर्वोत्तम दिन है। इस सरकार के पिछले तीन वर्ष के कामकाज पर नजर डाले तो इस सरकार का न तो कोई ‘विजन’ दिखाई देता है और न ही प्रदेश को विकास के पथ पर आगे ले जाने की कोई मंशा नजर आती है। अगर कुछ दिखता है तो बस अराजकता, मनमानीपन, महत्वपूर्ण पदों पर अपनों को बैठाने की कोशिश, जातीयता का जहर पैदा करना। इससे इतर कुछ भी नजर नहीं आता है। वर्ष 2012 में 15 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अखिलेश यादव की कैबिनेट की पहली बैठक में ही विधायकों को लक्जरी वाहन खरीदने के लिए विधायक निधि से 25 लाख रुपए दिए जाने का फैसला लिया गया था। इस फैसले की आलोचना हुई तो निर्णय को वापस ले लिया गया। दूसरी कैबिनेट की बैठक हुई तो महानगरों और शहरों में शाम सात से रात 11 बजे तक विद्युत कटौती का फरमान जारी कर दिया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इस अवधि में बिजली का सर्वाधिक खपत होती है। व्यापारियों ने जब तर्क दिया कि इसी अवधि में उनका सर्वाधिक कारोबार होता है तो फिर फरमान वापस ले लिया गया। 2012 में चुनाव के दौरान बेरोजगारी भत्ता, इंटरमीडिएट उत्तीर्ण छात्रों को लैपटॉप और हाईस्कूल उत्तीर्ण छात्रों को टैबलेट दिए जाने की घोषणा की  गई थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद करीब दो साल तक अखिलेश यादव कूद-कूद कर विभिन्न जिलों में भव्य समारोहों में पहुंचकर लैपटॉप का वितरण करते रहे। लोकसभा चुनाव में जब पूरे उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के पांच सांसद जीतकर आए तो सरकार ने इस योजना को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया। लैपटॉप वितरण के लिए आयोजित किए जाने वाले समारोहों में ही करोड़ों रुपए बेवजह खर्च कर दिए गए। इन सब घटनाओं का जिक्र इसलिए करना जरुरी है कि आपकी जेहन में यह बात साफ हो जाए कि इस सरकार को कोई ऐसा ‘विजन’ और ‘डिसीजन’ नहीं दिखाई देता, जिससे उत्तर प्रदेश विकास के पथ पर एक कदम भी आगे बढ़ सके। अब हम बात करेंगे उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की। उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से साम्प्रदायिक दंगे की शुरुआत हुई। प्रदेश के विभिन्न अंचलों से होती हुई साम्प्रदायिक दंगे की आग ने मुजफ्फरनगर में ऐसा वीभत्स रुप धारण कर लिया कि सैकड़ों निर्दोष लोगों की अपनी जान गंवानी पड़ी। मां और बहनों की आबरु लूटी गयी। यह घटनाएं उस जिले में हुई, जहां के प्रभारी मंत्री मुलायम सिंह यादव को अपना सबसे बड़ा सरपरस्त मानने वाले आजम खान हैं। इतनी बड़ी घटना के बाद भी आजम खान की शान में कोई कमी नहीं आयी। शायद आजम खान के स्थान पर मुजफ्फरनगर को कोई और मंत्री रहा होता और ऐसी घटना घटती तो सबसे पहले उसे मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया जाता। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि दो मंत्री अखिलेश सरकार की कैबिनेट से बर्खास्त किए गए हैं। एक तो मरहूम राजाराम पाण्डेय जी रहे, जिनके ऊपर सिर्फ इस बात का इल्जाम था कि उन्होंने एक महिला मुलाजिम की खूबसूरती की भरी सभा में तारीफ कर दी थी। दूसरे हैं फैजाबाद मिस्टर तेज नारायाण उर्फ पवन कुमार पाण्डेय जो खुद को अखिलेश यादव का बालसखा बताते हैं। पवन पाण्डेय ने ही दो साल पहले लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यालय में ब्राह्मण सम्मेलन कराया था। पवन पाण्डेय पर भी महज इस बात का इल्जाम है कि उन्होंने किसी सरकारी मुलाजिम से जोर जबरदस्ती की। उत्तर प्रदेश के ही प्रतापगढ़ जिले में डिप्टी एसपी जियाउल हक की एक प्रधान की हत्या के बाद भड़के आक्रोश में भीड़ ने हत्या कर दी तो उसका इल्जाम अखिलेश कैबिनेट के मंत्री कुंवर रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भइया’ पर मढ़ दिया गया। इसके बाद राजा भइया ने खुद मंत्री पद छोड़ दिया। मामले की सीबीआई जांच हुई और राजा भइया निर्दोष साबित हुए। बंदायू में दो दलित बालिकाओं को शव पेड़ से लटका हुआ पाया गया। इस मामले में राज्य सरकार की जांच एजेसिंयों ने अलग-अलग रिपोर्ट दी। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के निदेशक को ही बेसिक शिक्षा विभाग के भी निदेशक का कार्यभार दे दिया गया। नियमत: एक व्यक्ति को ऐसे महत्व के दो पदों का काम नहीं सौंपा जा सकता है। इस पर हाईकोर्ट ने भी टिप्पणी की, फिर भी राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर कोई असर नहीं पड़ा। लोकसेवा आयोग में नियुक्तियों में एक वर्ग विशेष के अभ्यर्थियों के चयन का मामला अभी तक गूंज रहा है। पुलिस के तो न जाने कितने अधिकारियों की हत्या कर दी गर्इं। मथुरा और प्रतापगढ़ में शिक्षकों की हत्या किए जाने का भी मामला सामने आया। इलाहाबाद में सीजेएम कोर्ट परिसर में एक अधिवक्ता की पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। गोरखपुर के एसएसपी पर वहां से समाजवादी पार्टी के विधानपरिषद सदस्य ही पैसा लेकर लोगों की हत्या करवाने का इल्जाम लगा रहे हैं। यह मामला उन्होंने सदन में भी उठाया। यह सब बातें तो दीगर हैं, खुद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ही राज्य सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते रहते हैं और मंत्रियों को भी यह संदेश देते रहते हैं कि वह लोग सही कार्य नहीं कर रहे हैं। प्रदेश भर की सड़ों की दशा दयनीय है। तीन साल से न तो सड़कों की मरम्मत हो पा रही है और न ही नई सड़कों का निर्माण हो पा रहा है। नहरों में पानी नहीं आया। क्रय केन्द्रों पर किसान अपनी उपज को नहीं बेंच सके। इसके बावजूद भी यह सरकार खुद को जलकल्याणकारी बताती रही। सैफई में कौन-कौन से और किस तरह के आयोजन हुए मैं इसका जिक्र करना नहीं चाहता। ऊपर जिन-जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है, उतने से ही आप यह समझ गए होंगे कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार सही मायने में किस मिशन पर काम कर रही है।

Saturday 14 March 2015

‘मेक इन’ व ‘स्किल्ड इंडिया’ की परिकल्पना साकार करेगा छत्तीसगढ़ का बजट

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने 13 मार्च 2015 को विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए बजट पेश किया। बजट में पूंजीगत व्यय में 39 प्रतिशत वृद्धि की गई है। बजट में युवा, अधोसंरचना विकास एवं औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दी गई है। बजट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक-इन-इंडिया तथा स्किल्ड इंडिया की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में एक ठोस पहल की गई है। अधोसंरचना के विकास से इन्वेस्टर्स सेंटिमेंट तथा औद्योगिक विकास को ऊर्जा मिलेगी एवं भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाने के लिए युवाओं के कौशल उन्नयन को विशेष महत्व मिलेगा। इस बजट के साथ पहली बार ‘यूथ बजट’ प्रस्तुत किया गया है। युवाओं के विकास के लिए बजट में कुल 6 हजार 151 करोड़ आवंटित किया गया है, जो कि कुल आयोजना व्यय का 16 प्रतिशत है। युवाओं को कौशल उन्नयन के अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए अब तक का सर्वाधिक 735 करोड़ रुपए का प्रावधान है। राज्य में इस साल 17 नये आईटीआई तथा 3 पॉलीटेक्निक खोले जाएंगे। युवा समग्र विकास योजना चालू कर आईटीआई, तकनीकी विश्वविद्यालय व व्यापम की प्रवेश परीक्षाओं के परीक्षा शुल्क में 50 प्रतिशत की कमी की जाएगी और आईटीआई की फीस में भी 50 प्रतिशत की कमी की जाएगी। इस बजट में अधोसंरचना के विकास पर सर्वाधिक 11 हजार करोड़ का प्रावधान है, जो कि गत वर्ष की तुलना में 39 प्रतिशत अधिक है। प्रदेश में रोड नेटवर्क के उन्नयन के लिए 5 हजार 183 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है, जिसके अंतर्गत राज्य राजमार्ग तथा सभी जिला मुख्यालयों को जोड़ने वाली सड़कों को डबल लेन में उन्नयन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप मोड से 2 हजार किमी लंबाई की सड़कों का भी उन्नयन किया जाएगा, जिस पर 3 वर्ष में 10 हजार करोड़ का निवेश किया जाएगा। इसके अतिरिक्त ग्रामीण सड़कों के विकास हेतु 700 करोड़ आबंटित किया गया है। लगभग 5 हजार करोड़ के निवेश से 300 किमी के रेल कॉरीडोर का विकास किया जाएगा। रायपुर स्थित स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय मापदंड के अनुरूप बनाया जाएगा। औद्योगिक विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने के उद््देश्य से नई औद्योगिक नीति तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी नीति लागू की गई है। नया रायपुर में इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा के लिए ट्रिपल आईटी प्रारम्भ कर दिया जाएगा। 17 जिला मुख्यालय में हाईटेक बस स्टैंड का निर्माण किया जाएगा। खाद्य एवं पोषण सुरक्षा हेतु लगभग 5 हजार करोड़ का प्रावधान है। कृषि बजट के लिए 10 हजार 700 करोड़ आबंटित है, जो कि गत वर्ष की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक है। सिंचाई क्षमता के विस्तार हेतु विशेष महत्व दिया गया है एवं इस हेतु 2 हजार 700 करोड़ आबंटित है। निराश्रित पेंशन राशि में 20 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, गत वर्ष भी इतनी ही वृद्धि की गई थी। इससे 16 लाख पेंशनभोगी लाभान्वित होंगे। प्रदेश के टीबी मरीजों को ईलाज के साथ-साथ पूरक पोषण की अभिनव योजना लागू की जाएगी। ऐसा करने में छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा। बच्चों में डायबिटीज के बढ़ते हुए प्रसार को देखते हुए मुख्यमंत्री बाल मधुमेह सुरक्षा योजना प्रारम्भ की जाएगी। शहरी क्षेत्र में स्लम एरिया में सुलभ शौचालय तथा व्यक्तिगत शौचालय हेतु 100 करोड़ का प्रावधान है। रायपुर, बिलासपुर एवं दुर्ग में कामकाजी महिलाओं के लिए 15 करोड़ की लागत से महिला हॉस्टल प्रारम्भ किए जाएंगे। बालिकाओं में उच्च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा विस्तार हेतु 4 हजार सीटों के 80 छात्रावासों का निर्माण किया जाएगा। ट्रायबल सबप्लान के लिए 36 प्रतिशत आयोजना व्यय प्रावधानित है, जबकि जनसंख्या का अनुपात 32 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति जनजाति बाहुल्य क्षेत्र में 11 आई.टी.आई. तथा 1 पॉलीटेक्निक खोले जाएंगे।  इन क्षेत्रों में 100 हाई स्कूल, हायर सेकेण्डरी स्कूल भवन तथा 50 कन्या छात्रावास निर्माण किए जाएंगे। आश्रम छात्रवृत्ति 750 से बढ़ाकर 800 रुपए तथा भोजन सहायक राशि 400 से बढ़ाकर 500 रुपए की जाएगी। 1 करोड़ तक वार्षिक बिक्री वाले छोटे एवं मध्यम व्यवसाइयों को त्रैमासिक विवरणी प्रस्तुत करने से मुक्ति। मंदी से राज्य के आयरन-स्टील उद्योगों को राहत देने के लिये रि-रोल्ड उत्पाद पर वैट की दर 5 से घटाकर 4 प्रतिशत किया गया है। सूक्ष्म तथा लघु उद्योगों को राहत देने के लिये प्रवेश कर से छूट हेतु पंूजी विनियोजन की सीमा रुपये 1 करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़ किए गए हैं। प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से बायो-टायलेट पर प्रचलित 14 प्रतिशत वैट तथा प्रवेश कर समाप्त कर दिया गया है। अफोर्डेबल हाउसिंग स्कीम के अंतर्गत निर्मित होने वाले आवास निर्माण में उपयोग हेतु प्री-कास्ट, प्री-फैब्रीकेटेड, मोनोलिथिक कांक्रीट निर्माण पर वैट तथा प्रवेश कर समाप्त कर दिया गया है। एविएशन टरबाईन फ्यूल पर वैट की दर 5 से घटाकर 4 प्रतिशत कर दी गई है। वर्ष 2014-15 के लिए प्रचलित भाव पर छत्तीसगढ़ की आर्थिक विकास दर 13.20 प्रतिशत अनुमानित की गई है। इसी अवधि में देश की विकास दर 11.59 प्रतिशत अनुमानित है। कृषि क्षेत्र में विकास दर 14.18 प्रतिशत, औद्योगिक क्षेत्र में 10.62 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र में 15.21 प्रतिशत की वृद्धि की संभावना जताई गई है। किसानों के लिए सूक्ष्म सिंचाई योजना को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-30 करोड़, ब्याज मुक्त अल्पकालीन कृषि ऋण-158 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। युवाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए युवा क्षमता विकास योजना तैयार की गई है। कौशल उन्नयन कार्यक्रमों के लिए 735 करोड़ दिए गए हैं। दुर्ग में नवीन विश्वविद्यालय की स्थापना होगी। बस्तर, कांकेर, रायपुर, दुर्ग तथा राजनांदगांव में आदर्श आवासीय महाविद्यालय की स्थापना कराई जाएगी। 36 महाविद्यालयों में नवीन स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रारंभ किए जायेंगे। अंबिकापुर तथा राजनांदगांव चिकित्सा महाविद्यालय के लिए 79 करोड़ रुपए प्रदान किए गए हैं। महाविद्यालयों में नि:शुल्क वाईफाई सुविधा प्रदान की जाएगी।