2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब केवल कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने तो प्रधानमंत्री पद के लिए अपने उम्मीदवार की भी घोषणा कर दी है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के उम्मीदवार हैं जबकि संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि कांग्रेस ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है। भारत में बात जब चुनाव की हो तो मुसलमान मतदाता के बारे में अनायास ही ध्यान चला जाता है। भारत में मुसलमान लगभग 13 से 14 फीसदी हैं और लोकसभा की कई सीटों पर चुनावी फैसलों को सीधे प्रभावित करते हैं। दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने की गंभीर दावेदारी करने वाली कोई भी पार्टी शायद उनको नजरअंदाज नहीं करना चाहेगी। इसलिए ये बहुत अहम मुद्दा है कि भारतीय मुसलमान इस समय क्या सोच रहे हैं और आने वाले चुनावों में उनका रुख क्या होगा? मुसलमानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति जानने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सच्चर की अध्यक्षता में बनी सच्चर कमेटी ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि विकास के सभी पैमानों पर मुसलमानों की हालत देश में बेहद पिछड़ी मानी जाने वाली अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लगभग बराबर है। केंद्र की तत्कालीन सरकार यूपीए-1 ने इसे फौरन स्वीकार तो कर लिया लेकिन छह-सात साल के गुजर जाने के बाद जितनी भी रिपोर्ट आई हैं, उन सभी का मानना है कि मुसलमानों की हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। सितंबर 2013 में काउंसिल फॉर सोशल डेवेलपमेंट (सीएसडी) की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई सरकारी योजनाओं का ज्यादातर लाभ या तो बहुसंख्यक समाज के लोग या गैर-मुसलमान अल्पसंख्यक समाज के लोग उठा रहे हैं। सीएसडी की रिपोर्ट के मुताबिक 25 फीसदी से अधिक मुसलमान जनसंख्या वाले देश के जिन 90 जिÞलों में एमएसडीपी कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी, उन इलाकों में केवल 30 फीसदी मुसलमानों तक इन योजनाओं का लाभ पहुंचा। बात सिर्फ सच्चर कमेटी की सिफारिशों की नहीं है, दूसरे कई मामलों में भी मुसलमानों को लगता है कि यूपीए सरकार ने बीते नौ सालों में उनके लिए कुछ खास नहीं किया है। जमीयतुल-उलमा-ए-हिंद के महासचिव महमूद मदनी कहते हैं कि यूपीए सरकार से मुसलमानों को दो नुकसान हुए हैं। मदनी कहते हैं कि एक नुकसान तो ये हुआ कि काम नहीं किया। उससे बड़ा नुकसान ये किया कि कामों का ऐलान करके मुसलमानों के तुष्टीकरण का इल्जाम अपने ऊपर ले लिया और मुसलमानों का कोई फायदा भी नहीं किया। अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री के रहमान खान कहते हैं कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने कुल 72 सिफारिशें चुनी थीं। उनमें से तीन को नहीं माना गया जो कुछ खास नहीं थी। बाकी 69 में से सरकार ने 66 को लागू कर दिया है और केवल तीन सिफारिशों पर अमल किया जाना बाकी है। अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जा रही योजनाओं की जांच के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय ने एक कमेटी का इसी साल गठन किया है। उम्मीद है कि उसकी रिपोर्ट साल 2014 के शुरूआती महीनों में आएगी।
अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने वाइट हाउस से जारी संदेश में कहा कि आज दुनिया ने सबसे ज़्यादा प्रभावशाली, साहसी और अच्छे इंसानों में से एक को खो दिया है जिनके साथ इस लोंगो को पृथ्वी पर वक़्त गुज़ारने का मौका मिला. उनका कहना था, "वो अब हमारे नहीं रहे, युगों के हो गए हैं." मंडेला अपनी कामयाबी का श्रेय हमेशा दूसरों को देते थे. बराक ओबामा ने कहा कि मंडेला की क़ैदी जीवन से राष्ट्रपति तक की यात्रा ने उस विश्वास को जन्म दिया है कि लोग और देश बदल सकते हैं अच्छाई के लिए. ओबामा का कहना था, "मैं उन करोड़ों लोगों में से हूं जिन्हें मंडेला की ज़िंदगी ने प्रेरित किया. मेरी ज़िंदगी का पहली राजनीतिक विरोध प्रदर्शन रंगभेद के ख़िलाफ़ था. मैं जब तक ज़िंदा रहूंगा मंडेला की जिंदगी से सीखने की कोशिश करता रहूंगा."
नामुमकिन कुछ नहीं
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने अपने शोक संदेश में कहा है कि नेल्सन मंडेला ने दुनिया को दिखाया कि अगर सब एक साथ मिलकर ख़्वाब देखें, इंसाफ़ और इंसानियत के लिए एकजुट होकर काम करें तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. बान की मून ने 2009 में मंडेला के साथ हुई अपनी मुलाक़ात को याद करते हुए कहा कि जब उन्होंने मंडेला को उनकी कर्बानियों के लिए धन्यवाद दिया तो मंडेला ने बस इतना ही कहा कि इसका श्रेय दूसरों को जाता है. अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कहा है कि दुनिया ने आज अपने सबसे अहम नेताओं में से एक और एक अच्छे इंसान को खो दिया है.बेहतरीन मिसाल
पूर्व राष्ट्पति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने मंडेला को याद करते हुए कहा कि उन्होंने जो मिसाल कायम की उसकी वजह से आज दुनिया एक बेहतर जगह है. बुश का कहना था, "हम उस अच्छे इंसान की कमी महसूस करेंगे लेकिन उनका जो योगदान था वो हमेशा ज़िंदा रहेंगे."
अफ़्रीका में एड्स के ख़िलाफ़ लंबे समय से मुहिम चला रहे बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स ने कहा है कि वो जब भी नेल्सन मंडेला से मिले ग़रीबों की ज़िंदगी सुधारने के लिए एक नए उत्साह और जोश के साथ लौटे.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने मंडेला के निधन पर शोक जताते हुए कहा है:" दुनिया से एक बड़ी रोशनी ख़त्म हो गई है. वो हमारे समय के नायक थे."