इन दिनों अपने देश में राजनेताओं के बीच इतिहास और
भूगोल की जानकारी को लेकर जोरदार बहस छिड़ी हुई है. किस नेता को देश के
इतिहास और भूगोल की कितनी जानकारी है, इस पर दावों, प्रतिदावों, खंडन और
मंडन का दौर जारी है. बिहार से लेकर गुजरात और दिल्ली तक के नेताओं व उनके
समर्थकों में इस बात की होड़ मची है कि उनके नेता के पास देश के
इतिहास-भूगोल की सबसे बेहतर जानकारी है. पता नहीं यह राजनीति है या कोई
बौद्धिक बहस? वैसे मुङो यह बहस बौद्धिक कम और केबीसी मार्का क्विज ज्यादा
लग रही है. इतिहास-भूगोल जैसे विषयों पर बहस करने के लिए देश में
बुद्धिजीवियों की कोई कमी तो है नहीं. वे इस विषय में पारंगत भी हैं.
जिनका यह काम है, उन्हें करने दीजिए. कहा भी गया है, जिसका काम उसी को
साजे. राजनेताओं का काम है जनता को समस्याओं से निजात दिलाने का. जिसका
दावा भी वे करते हैं. पर अब उन्हें जनता से कोई मतलब नहीं रह गया है. इसलिए
तो अब कोई जन-नेता नहीं पैदा होता, अब जाति-नेता पैदा हो रहे हैं. अभी
देशवासियों के लिए इतिहास-भूगोल की जानकारी से अधिक अहम है आलू-प्याज का
भाव जानना. आलू और प्याज के बिना रहने की कल्पना आम लोग कर भी
नहीं सकते. पेट भरने के लिए इससे सुलभ और सर्वग्राह्य कुछ भी नहीं. सत्तू
से लेकर खिचड़ी, और समोसा से लेकर खाने की हर थाली आलू-प्याज के बिना अधूरी
मानी जाती है. प्याज तो पहले भी गाह-बगाहे रुलाती रही है, लेकिन आलू इस
कदर पहली बार महंगा हुआ है. जनता आलू-प्याज को लेकर परेशान है और हमारे
नेता लोग इतिहास-भूगोल के ज्ञान पर बेमतलब की बहस लेकर बैठे हैं. जब पेट
भरा हो, तभी कोई बहस भी अच्छी लगती है. भ्रष्टाचार से लेकर कालाधन, और
बढ़ती महंगाई से लेकर आतंकवाद तक कई समस्याएं अपने यहां मुंह बाये खड़ी
हैं, लेकिन मीडिया में इतिहास को लेकर बहस जारी है. इन फालतू की बहसों से न
तो देश का भला होना है और न ही निवाला मिलना है. मजे की बात तो यह है कि
बात- बात पर अपने ब्लाग के जरिए नया तराना छेड़ने- वाले या फिर ट्वीट
करनेवाले आलू-प्याज के मामले में चुप क्यों हैं? मुझे तो लगता है कि वे कभी आलू-प्याज खरीदें, तब न
जनता की पीड़ा का एहसास हो. उनके लिए तो एक कॉल पर हर तरह की सेवा और
सुविधा उपलब्ध हो जाती है, तो आलू-प्याज कहां से ध्यान में आयेगा? नेताओं
के बीच इस तरह ज्ञान पर बहस पहली बार शुरू हुई है. असल में जनता की परेशानी
पर बोलने का नैतिक आधार खो चुके इन नेताओं को सुर्खियों में बने रहने के
लिए नया-नया तिकड़म आजमाना पड़ता है. नेताओं को एक सुझाव. अगर आलू-प्याज पर
इतनी बहस कीजिए, तो शायद आमजन के बीच पैठ बन जाए.
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