Monday 11 November 2013

बंद हो मनरेगा और एमडीएम

देश में गरीबी दूर करने और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार के निर्देशन में दो प्रमुख योजनाएं संचालित है। इनका नाम हर कोई जानता है। पहली योजना है मनरेगा और दूसरी योजना है मिड-डे-मील योजना। दोनों योजनाओं पर देश में प्रतिवर्ष कई लाख करोड़ रूपये का अपव्यय किया जा रहा है। यहां अपव्यय शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि जो धन व्यय किया जा रहा है, उसका कोई सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आ रहा है। जब मनरेगा योजना लागू की जा रही थी तो जोर-शोर से खूब प्रचार किया जा रहा था कि इससे न केवल मजदूरों की तकदीर बदल जाएगी, बल्कि अविकसित गावों की तस्वीर भी बदल जाएगी। अब आप से हम यह सवाल करते हैं कि आप अपने आसपास के गांव और वहां रह रहे मजदूरों दोनों की स्थिति का मूल्यांकन करिये और देखिये कि पिछले दस सालों में क्या दस मजदूरों की तकदीर बदली है और क्या दस गावों की तस्वीर बदली है। अगर हां तो मैं अपनी बात आपसे क्षमा मांगते हुए वापस ले लूंगा। सच कहूं तो इन दोनों योजनाओं से अगर किसी की तकदीर और तस्वीर बदली है तो वह हैं नेता और कुछ अफसर। इन दोनों योजनाओं में देश के गरीब मजदूर के खून पसीने से कमाई गई अरबों की धनराशि व्यर्थ में व्यय कर दी गयी । हम विनम्रता के साथ आपसे यह भी कहना चाहेंगे कि अर्थशास्त्र का नियम है कि पैसे का हमेशा उत्पादक व्यय किया जाना ही अच्छा होता है यानि जो पैसा व्यय किया जाये, उसका कुछ रिटर्न भी मिले। पर इन योजनाओं पर जो व्यय हो रहा है वह अनुत्पादक व्यय की श्रेणी में आता है। अर्थात जो धनराशि व्यय की गयी, उसका परिणाम कुछ भी नहीं मिला। आप गौर करें कि अगर जो धनराशि इन दोनों योजनाओं पर व्यय की गयी है अगर उसका उपयोग कोई उद्योग लगाने में किया गया होता तो देश का उत्पादन भी बढ़ता और शिक्षित बेरोजगारों को स्थायी रोजगार मिलने के साथ ही मजदूरों को भी स्थायी काम मिलता। अब समय आ गया है कि इन दोनों योजनाओं को बंद करने की बात हो और पैसे का सदुपयोग किये जाने की बात हो। 10 नवंबर 2013 को सपा के राष्टीय महासचिव प्रो. राम गोपाल यादव ने एमडीएम और मनरेगा दोनों योजनाओं को बंद किये जाने की मांग उठाई है। उनका यह कदम जैसे भी हो स्वागतयोग्य है।

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