Saturday 5 April 2014

कौन करेगा विश्व गुरू भारत की बात

आज भारत रो रहा है। इस देश पर हुकूमत करने का सपना पाले लोगों में से कोई भी भारत को विश्व गुरू बनाने की बात नहीं कर रहा है। कोई कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहा है तो कोई मोदी मुक्त भारत बनाने के नाम पर वोट मांग रहा है। अरे भारतवासियों उस दिन को याद करो, जब दुनिया में हम चीख-चीख कर कहा करते थे, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, आपस में हैं भाई-भाई। वह नारा कहां गया। 16वंी लोकसभा के चुनाव में कोई देश में मुसलमान के नाम पर वोट मांग रहा है तो कोई हिन्दू के नाम पर वोट मांग रहा है। कितना दुखद है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत बेटियों की अस्मत बचाने में, पर्यटकों की इज्जत बचाने में, देश को भ्रष्टाचार से बचाने में नाकाम रहा है और इस देश को दुनिया में अपमान सहन करना पड़ा। आज भी देश में किसान रो रहा है। शिक्षित नौजवार रोजगार पाने के लिए दर-दर की ठोकर खा रहा है। महिलाए देह व्यापार करने के लिए मजबूर हो रही हैं। आदिवासी इलाकों में उनके जीवन के साथ क्रूर मजाक किया जा रहा है। वोट की खातिर दंगे कराए जा रहे हैं। इसके उलट देश में पूंजीपतियों ने भारतीय संस्कृति को अपनी मुटठी में ले लिया है। जिस देश में लोग पैदल चलकर वोट मांगा करते थे, आज वहां हेलीकॉप्टर से प्रचार करने का ग्लैमर दिखाया जा रहा है। वोट को शराब और नोटों से खरीदा जा रहा है। लोगों को लालच दी जा रही है। हैरत है कि किसी भी पार्टी के घोषणापत्र में (जो अब तक आ चुके हैं) भारत को विश्व गुरू का दर्जा दिलाने के दिशा में काम करने की बात नहीं की गयी है। किसी ने बेराजगार युवकों के हाथ में रोजगार उपलब्ध कराने की बात नहीं की है। किसी ने कृषि को रोजगार का दर्जा दिलाए जाने की बात नहीं की है। किसी ने राईट टू रोजगार की बात नहीं की है। महिलाओं पर चारों ओर हो रही हिंसा की घटनाओं पर रोक कैसे लगे, इसकी बात नहीं की है। बिगड़ते ग्रामीण परिवेश, नष्ट होते कुटीर उद्योग, धूमिल होती सांस्कृतिक विरासत को बचाने की बात किसी ने नहीं की है। सबसे दुखद तो यह रहा कि धर्म की ध्वजा को ऊंचा करने की बजाय एक धर्म गुरू ने तो बाकायदा एक पार्टी के लिए वोट देने का फतवा जारी कर दिया। उन्होंने ऐसा करके देश को साम्प्रदायिक विभाजन के कगार पर खड़ा कर दिया है। गांव में जहां लोग एक दूसरे परिवार को अपना भाई मानने की संस्कृति का पालन कर रहे हैं, वहीं देश के  नेता उनके बीच विभाजन की रेखा खड़ा कर रहे हैं। हद है अगर सोच यही रही तो हमारा देश कहां जाएगा। देश के मतदाताओं को इस बात पर बहस करनी होगी और खूब सोच समझकर निर्णय  लेना होगा। अगर निर्णय की इस घड़ी में चूक हो गयी तो पांच साल के लिए फिर पछतावा करना होगा।

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