Tuesday 1 April 2014

दिल पर रखकर हाथ कहिए, देश क्या आजाद है

रमेश पाण्डेय
हम हर साल आजादी की वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाते आए हैं, बड़े गर्व के साथ खुद को आजाद कहलवाते हैं लेकिन अफसोस कि जब सच सामने आता है तो हमारे पास मुंह तक छिपाने के लिए कोई जगह नहीं बचती। हम दुनिया की उन घूरती आंखों का सामना नहीं कर पाते जो हमें अभी भी उसी नजर से देखती हैं जिस नजर से किई गुनाहगार को देखा जाता है और देखे भी क्यों ना। यह भी तो हमारा ही गुनाह है जो हम आजादी के इस मतलब को समझ नहीं पाए, भूख से बिलखते लोगों के पेट की आग को शांत नहीं कर पाए। जिस मुल्क को हम अपना आशियाना बनाकर रहते हैं उस मुल्क को हम गरीबी और लाचारी की हालत में छोड़ देते हैं। अभी पिछले दिनों आई हंगर ग्लोबल इंडेक्स की रिपोर्ट ऐसे बद्तर हालातों का ही एक नमूना थी जिसके अनुसार भुखमरी के आंकड़ों में भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से भी कहीं ज्यादा आगे निकल गया है और अब जिस नई रिपोर्ट की बात हम यहां करने जा रहे हैं। उसके अनुसार दुनिया में जितने भी गुलाम है उनमें से आधे भारत में हैं। बहुत से लोगों के लिए यह रिपोर्ट हैरानी का सबब बन सकती है लेकिन दुनिभर में मौजूद करीब 30 लाख गुलामों में से आधे गुलाम भारत की आबादी का हिस्सा हैं। वैश्विक स्तर के सूचकांक के अनुसार 30 लाख की यह आबादी उन लोगों की है जिन्हें जबरदस्ती मजदूर बनाया गया है, पैसे ना चुका पाने के कारण बंधुआ मजदूर बनाकर रखा गया है, मानव तस्करी के बाद न्यूनतम पैसों में अपना गुलाम बनाकर रखा गया है। ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार संगठन द्वारा हुए इस अध्ययन के बाद यह बात प्रमाणित हुई है कि भारत में जो गुलाम मौजूद हैं उन्हें या तो मानव तस्करी के बाद वेश्यावृत्ति में ढकेला गया है या फिर घरेलू सहायक के तौर पर उनका शोषण किया जाता है. इतना ही नहीं इससे भी ज्यादा दुखद तथ्य यह है कि ऐसे मजदूरों की संख्या भी बहुत ज्यादा है जिन्हें परिवार समेत बंधुआ मजदूरी करनी पड़ती हैं और उनकी आने वाली पीढ़ी को भी यह दर्द सहना पड़ता है क्योंकि वह कुछ पैसे लेनदार को नहीं चुका पाए थे। स्वतंत्रता का अधिकार प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। वह अपनी मर्जी से जहां चाहे वहां जा सकता है, अपने बात दूसरों तक पहुंचा सकता है,पढ़ सकता है कुछ बन सकता है। लेकिन उनका क्या जो आज भी एक कठपुतली की भांति अपने मालिक के ही इशारों पर नाच रहे हैं। उनका क्या जो आजादी के इतने वर्षों बाद भी आजादी की सांस लेने के लिए एक खुली खिड़की का इंतजार कर रहे हैं, उनका क्या जो जिनकी चीख बंद दीवारों के बीच कैद होकर रह जाती है? भारत का यह चेहरा वाकई बेहद दर्दनाक है लेकिन फिर भी हम शान से कहते हैं कि हम आजाद है। 16वीं लोकसभा के चुनाव में हमे पल प्रतिपल इस पर विचार करने की जरुरत है कि आखिर आजाद देश में 65 साल बाद भी यह स्थिति क्यों बनी हुई है। इसके लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं। साथियों अब समय आ गया जब हम जाति, मजहब और धर्म से ऊपर उठकर बिना किसी लालच और लाग लपेट के यह सोंचे की कौन सा उम्मीदवार देश के लिए बेहतर होगा। इसकी सबसे बड़ी और अहम जिम्मेदार उन दस करोड़ नौजवान साथियों की है जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

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