Wednesday 23 April 2014

कब आएगी खां साहब को सदबुद्धि!

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के एक नेता है खां साहब। उनकी हालत है कि काम के न काज के, मन भर अनाज के। मतलब साफ है कि खां साहब जब से राजनीति में है, उनके नाम पर कोई ऐसी उपलब्धि नहीं है, जिसके लिए उन्हें याद किया जाए। रामपुर में उन्होंने जौहर विश्वविद्यालय नेताजी (मुलायम सिंह यादव) की कृपा से स्थापित कर रखा है, जिसे लेकर वह आए दिन इतराते रहते हैं। 16वीं लोकसभा के चुनाव में वह एक बार फिर सुर्खियों में है। वैसे उत्तर प्रदेश में वह सेकुलर होने का दंभ भरते हैं, पर आम आदमी के बीच वह कम्यूनल राजनीति के लिए ही पहचाने जाते हैं। मुजफ्फरनगर के दंगे को ले तो अभी भी वह भयवश वहां नही जा रहे हैं और इसके पीछे वह लंबी तकरीर किया करते हैं। देश के निर्वाचन आयोग द्वारा बार-बार उन्हें टोंका जा रहा है, पर वह मानने को तैयार नहीं हैं। वह खुद को आयोग से भी ऊपर मानते हैं। यह देश की राजनीति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूण नेताजी के लिए है। अभी उन्हें खां साहब की यह आदतें भले ही अच्छी लग रही हों, पर आने वाले दिनों में उनके लिए खतरनाक साबित होंगी। शायद इसका भान नेताजी को अभी नहीं हैं। हों भी क्यो? इस समय उनके बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान के खिलाफ जारी किए गए इस कारण बताओ नोटिस के कुछ ही दिन पहले उनकी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए आयोग ने उन पर उत्तर प्रदेश में प्रचार करने पर प्रतिबंध लगाया था। आयोग ने आजम खान से शुक्रवार शाम तक जवाब दाखिल करने को कहा है। अन्यथा आयोग आगे उनसे जिक्र किए बगैर निर्णय लेगा। इस बात की चेतावनी भी जारी की है। आयोग ने कहा कि उसने गहरी चिंता के साथ यह गौर किया कि प्रतिबंध के बावजूद आजम खान ने दुराग्रहपूर्वक, लगातार और जानबूझकर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया है। नोटिस के मुताबिक खान ने संभल, रामपुर और बिजनौर में नौ और दस अप्रैल को भड़काऊ भाषण दिए जो समाज के विभिन्न समुदायों के बीच मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकते हैं और वैमनस्य पैदा कर सकते हैं। नोटिस में कहा गया है कि आयोग को ऐसी खबरें, शिकायतें मिली हैं कि चुनाव आयोग के 11 अप्रैल के आदेश का उसकी सही भावना के अनुरुप पालन करने की बजाय उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान उक्त आदेश में दिए गए निर्देशों में गतिरोध पैदा करने का प्रयास किया। आयोग ने कहा कि खान ने चुनाव आयोग के खिलाफ बिलकुल निराधार और अभद्र आरोप लगाए हैं। उन्होंने प्रथम दृष्टया चुनाव आचार संहिता के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन किया है। आयोग ने इस महीने की शुरुआत में नरेन्द्र मोदी के करीबी सहयोगी अमित शाह और सपा नेता आजम खान के भड़काऊ भाषणों को लेकर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए उन पर उत्तर प्रदेश में चुनावी सभा करने, प्रदर्शन करने या रोड शो करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। साथ ही अधिकारियों को उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने का निर्देश दिया था। आयोग ने बाद में अमित शाह के खिलाफ लगे प्रतिबंध को शाह द्वारा दाखिल किए गए इस आश्वासन के बाद उठा लिया था कि वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे चुनावी माहौल बिगड़े। आजम खान ने यह आरोप लगाकर विवाद पैदा कर दिया था कि 1999 का कारगिल युद्ध मुसलमान सैनिको ने लड़ा था और जीता था। उन्होंने हाल में गाजियाबाद की एक चुनावी सभा में कहा था कि कारगिल की पहाडि़यों को फतह करने वाले सैनिक हिन्दू नहीं बल्कि मुसलमान थे। अब खां साहब अपने इन बयानों पर गौर नहीं कर रहे हैं। उलट आयोग पर दोषारोपण कर रहे हैं। हंसी तो तब आती है, जब समाजवादी पार्टी भी उनके इसी सुर में सुर मिलाती है। समझ में नहीं आता कि इन खां साहब को सद्बुद्धि कब आएगी।

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