Saturday 12 April 2014

तुक्के पर नहीं सधा मुलायम सिंह का तीर!

 समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव भले ही डाक्टर राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश जी को अपना आदर्श पुरूष बताते है पर सच यह है कि उनके विचारों पर वह कभी एक कदम भी नहीं चलते। हो सकता कि इन महान पुरूषों के विचारों से उनका कोई लेना देना भी न हो। राजनैतिक फायदे के लिए एक बैनर लगा रखा है। मुलायम सिंह की राजनीतिक उंचाई में एक बात झलकती है वह है तीर तुक्के की राजनीति। हर समय उन्होंने परिस्थियों को देखकर तीर चलाया। तीर सही तुक्के पर बैठ गया तो राजनीति चमक गयी। सही कहा जाए तो समाजवादी पार्टी इसी तरह की राजनीति की उपज है। वैसे  भी हम सभी लोग यह बात भली-भांति जानतेे है कि इस समय देश में 16वी लोकसभा के गठन के लिए चुनाव हो रहे है। तमाम राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए चुनाव मैदान में है। सरकार किसकी बनेगी और प्रधानमंत्री कौन होगा यह 16 मई को आने वाले परिणाम केे बाद ही पता चलेगां। चुनाव जीतने के लिए तमाम तरह के हथंकडे अपनाने पड़ते है, झूठ-सच बोलना पड़ता है, गड़े मुर्दे उखाड़ने होते है ताकि मतदाताओं की नजर में अपनी और पार्टी की छबि बनाई जा सके तथा सत्ता प्राप्त की जा सके। इस समय चुनाव मैदान में एक-दूसरे को नीचा दिखाने और मेरी कमीज उसकी उसकी कमीज से ज्यादा साफ साबित करने के लिए नित नये स्वांग रचे जा रहे है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं। लोकतन्त्र में पक्ष के साथ ही विपक्ष का भी होना निहायत ही जरूरी होता है वरना सत्तारूढ़ दल मनमानी पर उतर आता है और लोकतंात्रिक मूल्यों का ह्रास होने लगता है। कहा जाता है कि ‘एवरी थिंग इस फेयर इन लव एण्ड वार‘ इसी कहावत को हमारे स्टार प्रचारक और नेता सच साबित करने में लगे है। ये सारे नाटक, सारे आरोप, प्रत्यारोप, एक दूसरे के विरूद्ध अनर्गल बयानबाजी तथा व्यक्तिगत, जाति एवं धार्मिक हमले 16 मई आते-आते पूरी तरह से समाप्त हो जायेगे। यह बात हम सभी जानते है क्योंकि हर पांच साल बाद ये ‘री टेक‘ होता है। चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के द्वारा एक दूसरे के विरूद्ध की गयी टिप्पणियों को नेतागण कतई दिल पर नहीं लेते है क्योंकि वे जानते है कि कब किससे और कहां हांथ मिलाना पड़ जाये। यही अपेक्षा पार्टी प्रमुख तथा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी अपने मतदाताओं से भी करते है लेकिन चुनाव के दौरान मतदाता की बुद्धि और विवेक चूकि लच्छेदार भाषणो के जरिये कुन्द हो जाती है इसलिए उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता है और वे मरने-मारने पर उतारू हो जाते है जबकि नेतागण चुनाव प्रचार का जब हेलीकाप्टर से लौटकर एयरपोर्ट पर उतरते है तो एक दूसरे का अभिवादन जरूर करते है और कुशल क्षेम भी पूंछते है। ऐसे में मैं समझ नहीं पाता हूं कि मतदाता आमने-सामने आने पर एक दूसरे के साथ भिड़ने तथा मरने मारने के लिए क्यों तैयार हो जाते है? क्यों उन नेताओं से सबक नहीं सीखते है जो चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे के विरूद्ध आग बबूला होने वाले एअरपोर्ट की वीआईपी लाउन्ज में एक साथ बैठकर काफी पीते है।
अब मैं यहां सपा प्रमुख मुलायम सिंह के उस भाषण का जिक्र कर रहा हूं जिसके कारण तमाम थूका-फजीहत हो रहीं है, उन्हें तमाम भला बुरा कहा जा रहा है, लानत-मलानत की जा रहीं है-
‘‘मुलायम सिंह का कहना था कि लड़के भूलवश या नादानी में बलात्कार कर बैठते है, लिहाजा उन्हें फांसी जैसी कड़ी सजा नहीं होनी चाहिये। उनके मुताबिक सहमति से सम्बन्ध बनाने वाली एक परिचित लड़की ही किसी बात से नाराज होकर लड़के पर बलात्कार का आरोप लगा देती है।‘‘ सपा प्रमुख ने यह बयान कोई हड़बड़ी में नहीं दिया और न ही उनके जैसे वरिष्ठ राजनेता से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे बगैर कुछ सोचे समझे ऐसे सवेदनशील मुद्दे पर बयान देंगे। अब प्रश्न यह उठता है कि तो फिर उन्होने ऐसा बयान क्यों दिया? पाठकों को यह समझना होगा कि मुरादाबाद के लगभग 17 लाख मतदाताओं में से 40 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं। सपा प्रमुख की सभा भी जिस जामा मस्जिद पार्क इलाके में हो रही थी वह भी मुस्लिम बहुल इलाका है। मुम्बई रेप कांड में फांसी की सजा पाने युवक भी मुस्लिम वर्ग के हैं। इस बात को ध्यान में रखकर नेताजी ने यह बयान दिया ताकि मतों का धुव्रीकरण हो सके और युवा वर्ग का समर्थन भी मिल सके। मैं इस बयान कि क्रिया और प्रतिक्रिया में नहीं जाना चाहता हूं और न ही इसका विश्लेषण करना चाहता हूं कि चुनाव में सपा को कितना फायदा होगा या नुकसान? इस बयान के मद्देनजर मैने केवल इतना समझा है कि यह बयान अन्य सवेंदनशील बयानों कि ही तरह ‘राजनीतिक बयान‘ है जिसका वास्तविकता से कुछ भी लेना देना नहीं। इसके पीछे की सोच केवल और केवल वोट हथियाना है। जैसा कि अब तक मुलायम सिंह करते आए हैं। यह बात अलग है कि जनता जागरूक हो रही है और हर बयान के मायने निकालने लगी है। फिलहाल यह पहली बार हुआ जब मुलायम सिंह का तीर तुक्के पर सही नहीं बैठ सका।

1 comment:

  1. "मति भ्रम तोर प्रगट मै जाना" बाबा तुलसी दास जी ने ऐसे ही नहीं इस बात को कही है रावण जब सीता जी को अपहरित कर ले गया तो उस समय का प्रसंग है नारी का अपमान जो कोई भी करता है इसका अर्थ ही है की उसकी मति भ्रष्ट हो चुकी है यही हाल समाज वादी नेता जी का है जैसा की आप ने लिखा है की इन स्वयंभू नेता जी और इनकी पार्टी का कभी भी समाजवादी विचारधारा से कोई लेना-देना ही नहीं था ये तो केवल तीर चलाते थे और अब तक इनका तीर सही निशाने पर लग रहा था इस बार चूक गये है मतिभ्रम का शिकार होना ही पतन की राह की ओर जाना है।

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