Wednesday 13 April 2016

अकेले अंबेडकर को संविधान का भगवान मानना गलत

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत देश ही नहीं अपितु दुनिया के अमूल्य धरोहर हैं। अस्पृश्यता के विरुद्ध उनके द्वारा चलाए गए आन्दोलन वरेण्य हैं।  इस देश की माटी का कण-कण उनका अभिनंदन करता है। किन्तु यह अत्यंत निन्दनीय है कि अकेले अंबेडकर को भारतीय संविधान का भगवान बताकर आने वाली पीढ़ी को इतिहास की सच्चाई से भटकाने की घृणित कोशिश की जा रही है।

ऐसे हुआ भारतीय संविधान का निर्माण

--संविधान सभा की प्रेरणा का स्रोत 17वीं और 18वीं शताब्दी की लोकतांत्रिक क्रांतियां हैं। इन क्रांतियों ने इस विचार को जन्म दिया कि शासन के मूलभूत कानूनों का निर्माण नागरिकों की एक विशिष्ट प्रतिनिधि सभा द्वारा किया जाना चाहिए।

--भारत की संविधान सभा का निश्चित उल्लेख भारत शासन अधिनियम, 1919 के लागू होने के पश्चात 1922 में महात्मा गांधी ने किया था।

--जनवरी 1925 में दिल्ली में हुए सर्वदलीय सम्मेलन के समक्ष कॉमनवेल्थ आॅफ इण्डिया बिल को प्रस्तुत किया गया, जिसकी अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की थी। भारत के लिए एक संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करने का यह प्रथम प्रमुख प्रयास था।
---19 मई, 1928 को बंबई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में भारत के संविधान के सिद्धांत निर्धारित करने के लिए मोतीलाल नेहरु के सभापतित्व में एक समिति गठित की गई। 10 अगस्त, 1928 को प्रस्तुत की गई इस समिति की रिपोर्ट की नेहरू रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसे लगभग ज्यों-का-त्यों 21 वर्ष बाद 20 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत स्वाधीन भारत के संविधान में समाविष्ट कर लिया गया।

---जून 1934 में कांग्रेस कार्यकारिणी ने घोषणा की कि श्वेत-पत्र का एकमात्र विकल्प यह है कि वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा एक संविधान तैयार किया जाए। यह पहला अवसर था जब संविधान सभा के लिए औपचारिक रूप से एक निश्चित मांग प्रस्तुत की गयी।
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1940 के अगस्त प्रस्ताव में ब्रिटिश सरकार ने संविधान सभा की मांग को पहली बार अधिकारिक रूप से स्वीकार किया, भले ही स्वीकृति अप्रत्यक्ष तथा महत्वपूर्ण शर्तो के साथ थी। यद्यपि 1942 का क्रिप्स मिशन पूर्णत: असफल सिद्ध हुआ, फिर भी उसमें संविधान सभा बनाने की बात को स्वीकार कर लिया गया था।
---अंतत: कैबिनेट मिशन, 1946 द्वारा संविधान निर्माण के लिए एक बुनियादी ढांचे का प्रारूप प्रस्तुत किया गया।
--- निर्धारित फॉर्मूले के अनुसार संविधान सभा में प्रांतों के अधिक-से-अधिक 296 सदस्य हो सकते थे और देशी राज्यों के 93।

--संविधान सभा में अंतिम रूप से प्रांतों के केवल 285 और देशी रियासतों के 78 प्रतिनिधि थे तथा संविधान के अंतिम मूल मसौदे पर इन्हीं 808 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किए गए।
---संविधान सभा के सर्वाधिक प्रभावशाली सदस्य थे- डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, जवाहरलाल नेहरु, वल्लभ भाई पटेल, डॉ. अम्बेडकर, गोविंद वल्लभ पंत, एन.जी.आयंगर, कृष्णास्वामी अय्यर, के. एम. मुंशी, आचार्य कृपलानी तथा श्यामाप्रसाद मुखर्जी।

--- तेजबहादुर सपू और जयप्रकाश नारायण को भी संविधान सभा की सदस्यता के लिए आमंत्रित किया गया था, किन्तु सप्रू स्वास्थ्य संबंधी कारणों के आधार पर इसे स्वीकार न कर सके और जयप्रकाश नारायण ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

---संविधान को सफलतापूर्वक निर्मित करने के उद्देश्य हेतु संविधान सभा ने कुल 22 समितियों का गठन किया, जिसमें 10 कार्यविधिक मामलों संबंधी एवं 12 तात्विक मामलों की समितियां थीं।

प्रारूप समिति (अध्यक्ष-बी.आर. अम्बेडकर)
प्रारूप समीक्षा समिति (अध्यक्ष-सर अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर)
समझौता समिति (अध्यक्ष-राजेंद्र प्रसाद)
संघ संविधान समिति (अध्यक्ष-जवाहरलाल नेहरू)
प्रांतीय संविधान समिति (अध्यक्ष-सरदार वल्लभ भाई पटेल)
मुख्य आयुक्त (प्रांत) समिति मूल अधिकार एवं अल्पसंख्यक समिति (अध्यक्ष-सरदार वल्लभ भाई पटेल)
भाषायी प्रांत समिति संघ शक्ति समिति (अध्यक्ष- जवाहरलाल नेहरू)

--संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसम्बर, 1946 को संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में संपन्न हुआ। डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सर्वसम्मति से संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुन लिया गया। इसके पश्चात् 11 दिसम्बर, 1946 को कांग्रेस के नेता डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित किए गए। 13 दिसम्बर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्देश्य-प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्ताव में भारत के भावी प्रभुसत्तासंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य की रुपरेखा प्रस्तुत की गई थी।

---सम्पूर्ण संविधान निर्माण में 2 वर्ष, 11 मास और 18 दिन लगे। इस कार्य पर लगभग 64 लाख रुपये व्यय हुए। संविधान के प्रारूप पर 114 दिन तक चर्चा चली। अंतिम रूप में संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां कायम की गईं।

---नागरिकता, निर्बचन, अंतरिम संसद, अल्पकालिक एवं परवर्ती उपबंध जैसे संविधान के कुछ अनुच्छेद संविधान की स्वीकृति के तुरन्त पश्चात अर्थात 26 नवम्बर, 1946 से ही लागू कर दिए गए थे, जबकि शेष संविधान 26 जनवरी, 1950 से संपूर्ण देश में लागू हुआ। 

6 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बिन पानी सब सून - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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    1. आपने मेरे लेख को महत्व दिया। इसके लिए तहेदिल से धन्यवाद।

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  2. सही कहा .अम्बेडकर जी का योगदान अविस्मरणीय है वे सचमुच भारत के रत्न हैं किन्तु जैसा कि आपने विस्तार से बताया है ,संविधान किसी एक के विचार चिन्तन का परिणाम नही है .

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    1. गिरिजा जी आपने टिप्पणी करके मेरा उत्साह बढ़ाया, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  3. जानकारियों से भरा यह आलेख महत्वपूर्ण है। पर अम्बेदकर का महत्व तब भी कम नहीं होता।

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    1. आशा जी आपने मेरे लेख के एक-एक शब्द की विवेचना की, इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया।

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