पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में खाता न खुलने
से समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को काफी निराशा हुई है,
क्योंकि इन चुनावों को 2014 के आम चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा था, और
मुलायम केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार का ताना-बाना बुन रहे थे।
खुद को तीसरे मार्चे के अगुवा के तौर पर प्रस्तुत कर बार-बार आगामी लोकसभा
चुनाव में तीसरे विकल्प की सरकार के सत्ता में आने का दावा कर रही सपा मध्य
प्रदेश और राजस्थान में गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई दलों के साथ गठबंधन
करके चुनाव मैदान में उतरी थी, लेकिन उसे नाकामी हाथ लगी।
सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि विधानसभा चुनाव के नतीजे
चिंता और चिंतन का विषय हैं। लेकिन कांग्रेस से नाराजगी का लाभ जिन दलों ने
उठाया है वे यह न भूलें कि जनता ने उनको स्वीकारा नहीं है बल्कि कांग्रेस
को हटाया है। मध्य प्रदेश में जहां सपा ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), समानता दल से गठजोड़
किया था तो राजस्थान में उसने जनता दल (सेक्युलर), जनता दल(युनाइटेड),
भाकपा और माकपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था।
राजस्थान में सपा ने समझौते के तहत 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे तो मध्य
प्रदेश में 190 सीटों पर, लेकिन दोनों जगहों पर सपा अपनी सीटों में इजाफा
करना तो दूर बल्कि पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा सकी। 2008 में इन दोनों
राज्यों में सपा को एक-एक सीट पर जीत मिली थी।
समाजवादी पार्टी तीसरे मोर्चे की हालत पतली होने का ठीकरा कांग्रेस के सिर
मढ़ रही है। सपा का कहना है कि कांग्रेस की खराब नीतियों के चलते
साम्प्रदायिक ताकतों को उभार मिला। राजेंद्र चौधरी ने कहा कि कांग्रेस की
कुनीतियों के चलते राज्यों में भाजपा को जीत मिली। लोकसभा चुनाव में जनता
भाजपा-कांग्रेस को भाव न देकर नए राजनीतिक विकल्प को सत्ता सौंपने का काम
करेगी। सपा निराश नहीं है।
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