Saturday 14 June 2014

मोदी ने साकार किया अटल का सपना

आइएनएस विक्रमादित्य को राष्ट्र को समर्पित हो गया। सबसे बड़े विमानवाहक पोत को राष्ट्र को समर्पित करने के दौरान नौसैनिकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है और यह प्राथमिकता में सबसे ऊपर है। आइएनएस विक्रमादित्य के नौसेना में शामिल होने के बाद भारत ऐसे देशों में शामिल हो गया है जिनके पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। इससे नौसेना की ताकत बहुत बढ़ गई है। करीब डेढ़ दशक पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय नौसेना को उन्नत विमानवाहक पोत से लैस करने का सपना देखा था। इसी कड़ी में राजग सरकार ने जनवरी, 2004 में रूस से करीब साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये की लागत वाले विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव की खरीद के सौदे पर दस्तखत किए थे। संयोग है कि अटल के इस सपने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साकार किया। भारतीय नौसेना ने नवंबर, 2013 में रूस के सेवर्दमाश्क में रूसी विमानवाहक पोत को हासिल किया था। रूसी मूल का यह युद्धपोत यूं तो 2008 में ही भारत को मिल जाना था, लेकिन मूल्यवृद्धि और तकनीकी कारणों से पांच साल की देरी हो गई। भारत ने यह युद्धपोत 15 हजार करोड़ की लागत से हासिल किया। विक्रमादित्य की लंबाई-282 मीटर, चौड़ाई 60 मीटर यानी कुल तीन फुटबॉल मैदानों के बराबर है। ऊंचाई- निचले छोर से उच्चतम शिखर तक 20 मंजिल और वजन 44500 टन है। विक्रमादित्य की खूबी है कि इस पर एक बार में 1600 से अधिक लोग तैनात होंगे। साथ ही 8000 टन वजन ले जाने में सक्षम 181300 किमी के दायरे में किसी सैन्य अभियान के संचालन में सक्षम 18 इसमें बनेगी 18 मेगावाट बिजली, जो किसी छोटे शहर के लिए काफी है। इसे आठ स्टीम बॉयलर 1,80,000 एसएचपी की ताकत देंगे। समंदर के सीने पर 60 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से यह चलेगा। आधुनिक रडार व निगरानी प्रणाली से लैस विक्रमादित्य 500 किमी के दायरे में किसी भी हलचल को पकड़े में सक्षम होगा। इस पर मिग-29के/सी हैरियर, कामोव-31, कामोव-28, ध्रुव व चेतक हेलीकॉप्टर समेत 30 विमान तैनात होंगे। इस पर खड़े चौथी पीढ़ी के मिग-29 के लड़ाकू विमान 700 किमी के दायरे में मार कर सकते हैं। इसके अलावा  विक्रमादित्य पोत ध्वंसक मिसाइल, हवा से हवा में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र और गाइडेड बमों से लैस होगा। इस पर लगा माइक्रोवेव लैंडिंग सिस्टम सटीक तरीके से विमानों की उड़ान व लैंडिंग के संचालन में सक्षम होगा। आईएनएस विक्रमादित्य ने भारतीय नौसेना की ताकत को पूरी दुनिया में बढ़ा दिया है। विमानवाहक पोत युद्धकाल में किसी भी देश के लिए सशक्त आक्रामक शक्ति प्रदान करते हैं। अपने डेक पर दर्जनों की संख्या में लड़ाकू विमानों को संभाले ये सुरक्षा कवच किसी ऐसे देश के लिए तो बेहद जरूरी हैं जिनकी सीमाएं समुद्र के किनारों से घिरी हुई हैं। आजादी के बाद भारत ने भी इस जरूरत को समझा था और 1957 में पहला विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत उसी ब्रिटेन से खरीदा था जिसके शासन के खिलाफ लड़कर हम आजाद हुए थे। 1945 में ब्रिटेन में आईएनएस हरक्यूलिस नाम से तैयार किये गये आईएनएस विक्रांत को ब्रिटेन ने कभी इस्तेमाल ही नहीं किया और बारह साल बाद भारत को बेच दिया था। चालीस साल तक भारत की सेवा करने के बाद यह विमानवाहक पोत 1997 में रिटायर कर दिया गया और 2014 तक वह मुंबई में कफ परेड के समंदर में म्यूजियम बनकर मौजूद रहा। फिलहाल अब उसे गुजरात के अलंग शिपब्रेकिंग यार्ड को बेच दिया गया है जहां उसे नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा। आईएनएस विक्रांत के बाद भारत में दूसरा विमानवाहक पोत आया आईएनएस विराट। यह आईएनएस विराट भी उसी ब्रिटेन से आया था जिससे हमने आईएनएस विक्रांत खरीदा था। 1959 में ब्रिटेन की सेवा में शामिल होनेवाले इस एयरक्राफ्ट कैरियर की कुल उम्र 25 साल थी। ब्रिटेन नेवी के लिए 27 साल सेवा देने के बाद 1986 में इसे दोबारा ठीक किया गया और भारत को बेच दिया गया। तब से लेकर अब तक भारत चार बार इस विमानवाहक पोत की मरम्मत करवा चुका है और फिलहाल यही विमानवाहक पोत सेवा में था। इस विमानवाहक पोत को चौथी मरम्मत के बाद भी 2012 में रिटायर हो जाना था लेकिन आईएनएस विक्रमादित्य की डिलिवरी में होने वाली देरी के कारण इसकी सेवाएं 2017 तक बढ़ा दी गई हैं। इस लिहाज से आईएनएस विक्रमादित्य भारत का एकमात्र ताकतवर विमानवाहक पोत है। दुनिया के वे देश जो युद्ध की राजनीति करते हैं उनके पास एक से अधिक विमानवाहक पोत हैं। अमेरिका और रूस इसमें सबसे आगे हैं। जल्द ही चीन भी इस बेड़े में शामिल हो जाएगा। इस लिहाज से भारत की तैयारियां भी कमजोर नहीं है। अगर नयी सरकार ने विदेशी पूंजी निवेश पर बहुत ज्यादा जोर नहीं दिया तो 2016-17 तक कोच्चि शिपयार्ड से विक्रमादित्य श्रेणी का अपना एयरक्राफ्ट कैरियर बनकर तैयार हो जाएगा।  वर्ष 2009 में शुरू किये गये स्वदेशी आईएनएस विक्रमादित्य क्लास एयरक्राफ्ट कैरियर की भार वाहन क्षमता भी उतनी ही है जितनी एडमिरल गोर्शकोव की। उम्मीद के मुताबिक 2016-17 तक सेवा में आने के बाद इस विमानवाहक पोत पर रूस निर्मित मिग 29 के अलावा स्वेदश निर्मित तेजस लड़ाकू विमान भी तैनात किये जाएंगे। लेकिन विक्रमादित्य से भी महत्वाकांक्षी परियोजना है आईएनएस विशाल। अगर भारत आईएनएस विशाल पर ध्यान देता है तो 2025 तक भारत का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत बनकर तैयार हो सकता है। लेकिन फिलहाल आईएनएस विशाल को बनाने की योजना कागजों पर ही है।

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