दिल्ली और देश में फर्क है. यदि आम आदमी पार्टी दिल्ली की सफलता को देश
के स्तर पर दोहराना चाहती है, तो केवल भ्रष्टाचार की बात करने से काम नहीं
चलेगा. देश की जनता के सामने बहुत सारे सवाल हैं. जैसे गरीबी कैसे दूर
होगी? मौजूदा ‘रोजगारहीन’ विकास चलता रहा, तो बेरोजगारी दूर होगी या यह और
बढ़ेगी? विस्थापन का सिलसिला कैसे रुकेगा? गांव कैसे बचेगा? पर्यावरण कैसे
बचेगा? केवल जनलोकपाल बन जाने या ईमानदार लोग चुन कर आ जाने से ये सभी
समस्याएं हल हो जायेंगी, ऐसा मानना नितांत भोलापन है और इतिहास के अनुभव के
खिलाफ है. व्यक्तिगत रूप से ईमानदार तो मनमोहन सिंह भी हैं, मोरारजी देसाई भी थे
और जवाहरलाल नेहरू भी थे, लेकिन उनकी गलत नीतियों, विकास की गलत सोच और
आर्थिक-सामाजिक ढांचों को बदलने की अनिच्छा ने देश को मौजूदा हालत में
पहुंचा दिया है. यदि इन अनुभवों से सबक नहीं लिया, तो कहीं इतिहास फिर अपने
को दोहराने न लगे. 2014 में एक बार फिर 1977 जैसा माहौल बन रहा है. लेकिन
यदि हम 1977 से आगे न बढ़े और हमने पुरानी कमियों को दुरुस्त नहीं किया, तो
खतरा इस बात का है कि युवाओं की यह ऊर्जा और मेहनत बेकार चली जायेगी और
देश एक बार फिर लंबी निराशा के गर्त में चला जायेगा.
ईमानदार कोई नहीं रहा। व्यक्तिगत ईमानदारी होती तो उक्त ईमानदारों ने जब ये देख लिया कि उनसे नहीं संभलेगा तो पद क्यों नहीं छोड़ा इन्होंने। लेकिन आपने सही कहा। जनलोकपाल क्या करेगा यदि पर्यावरण, पलायन के बारे में नहीं सोचा गया और पद-पैसे की निरर्थक लालसा यथावत बनी रहेगी तो।
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