Thursday 27 March 2014

क्या चुनाव में इनकी भी होगी बात?


रमेश पाण्डेय
देश में दो ऐसे क्षेत्र हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदला गया। एक है मगध जो बौद्ध बिहारों की अधिकता के कारण बिहार बन गया और दूसरा है दक्षिण कौशल जो छत्तीस गढों को अपने में समाहित रखने के कारण छत्तीसगढ़ कहलाया। यह दोनों क्षेत्र अति प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे। छत्तीसगढ़ वैदिक और पौराणिक काल में  भी विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा। यहां के प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष इस बात को इंगित करते हैं कि यहां पर वैष्णव, शैव, शाक्त और बौद्ध के साथ ही आर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का भी प्रभाव रहा। पौराणिक सम्पदा से समृद्ध होने के साथ ही यह क्षेत्र खनिज सम्पदा से  भी समृद्ध रहा है।  घने वनाच्छादित और प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में जनजातीय संस्कृति का पोषण, संवर्धन और उनके विकास कार्यक्रमों के संचालन की अपार संभावनाएं है। 16वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनावी जंग छिड़ी हुई है। दुख है कि इस जंग में यहां की समृद्धि का केन्द्र जनजातीय संस्कृति का विकास कोई मुद्दा नहीं है। आदिवासियों को चिकित्सा, शिक्षा और रोजगार की सुविधा मुहैय्या कराया जाना किसी भी दल के प्रमुख एजेंडे में  नही है। यहां भी उम्मीदवार राजनैतिक दलों के अगुवा की तरह कीचड़ उछाल संस्कृति को आधार बनाकर चुनाव मैदान में हैं। छत्तीसगढ़ की भौगोलिक और सामाजिक स्थित पर नजर डाले तो स्पष्ट होता है कि यहां की एक तिहाई जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है। यहां प्रदेश की कुल जनसंख्या का 31.76 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों का है। मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र, उड़ीसा, गुजरात और झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ का स्थान जनजातियों की जनसंख्या के आधार पर छठे नम्बर पर आता है। कुल जनसंख्या प्रतिशत के आधार पर छत्तीसगढ़ का मिजोरम, नागालैंड, मेघालय औरअरूणचल प्रदेश के बाद देश में पांचवा स्थान है। नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 2,08,33,803 थी, जिसमें अजजा की जनसंख्या 66,16,596 है जो कि राज्य की जनसंख्या का 31.76 प्रतिशत है तथा देश की अजजा की जनसंख्या का 8.44 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ राज्य में जनजातीय समूह में अगरिया, बैगा, मैना, भूमिया, भूईहर, पालिहा, पांडो, भतरा, भंुजिया, बिआर, बियार, बिझवार, बिरहुल, बिरहोर, धनवार, गदाबा, गदबा, गोंड, अगरिया, असूर, बड़ी, मारिया, बड़ामारिया, भटोला, बिसोनहान मारिया, छोटा मारिया, दंडामी मारिया, घुरू, दोरला, हिलमारिया, कंडरा, कलंगा, खटोला, कोईतार, कोया, खिरवार हिरवारा, कुचामारिया, कुचाकी मारिया, माडि़या, मुरिया, नगारची, नागवंशी, ओझाा, राज, सोन्झारी, झोका, भाटिया, भोटिया, बड़े माडि़या बडडे माडि़या, हल्बा, कमार, कंवर, कवर, कौर, चेरवा, राठिया, तंवर, छत्री, खैरवार, कोंदर, खरिया, कांेध, खांड, कांध, कोल, कोरवा, कोड़ाकू, मांझी, मझवार, मुण्डा, नगेसिया, नगासिया, उरांव, धनका, धनगड़, पाव, परधान, पथारी, सरोती, पारधी, बहेलिया, चितापाधी, लंगोली पारधी, फासपारधी, तिकारी, ताकनकर, टाकिया, परजा, सोंटा और संवरा जनजातियां निवास करती हैं । इन जातियों में से पांच जनजातियों क्रमश: कमार, अबूझमाडि़या, पहाड़ी कोरवा, बिरहारे और बैगा को विशेष पिछड़ी जनजाति के रूप में भरत सरकार द्वारा मान किया गया है। कीर, मीणा, पनिका तथा पारधी क्षेत्रीय बंधन मुक्त जनजाति है। छत्तीसगढ़ राज्य के सभी सोलह जिलों में जनजातियों का निवास है। इसमें क्रमश दंतेवाड़ा (77.58 प्रतिशत), बस्तर (66.59), कांकेर (57.71), जशपुर (66.59), तथा सरगुजा (55.4 प्रतिशत), में आधे से अधिक तथा कम संख्या की दृष्टि में दुर्ग (12.43 प्रतिशत ), जांजगीर-चांपा (13.25), रायपुर (14.84), बिलासपुर (19.55), जिला है। कोरिया में 47.28 , कोरबा में 42.43, रायगढ़ में 36.85, राजनांदगांव में 26.54, धमतरी में 26.44 और कवर्धा में 21.04 प्रतिशत जनजाति रहतीं है। आज भी आदिवासी इलाकों के रहवासी झरिया से पानी लेकर पीने को मजबूर हैं। इनका शारीरिक शोषण होना आम बात है। सामान्य प्रसव के लिए भी इन इलाकों में पर्याप्ह सुविधा नहीं है। आज भी आदिवासियों के ज्यादातर परिवारों की आजीविका जंगल पर आश्रित है। देश प्रगति कर रहा है। इस प्रगति में इन आदिवासियों के एक-एक वोट का भी महत्व है। पर लोकसभा के चुनाव में यह मुद्दे गौड़ नजर आ रहे हैं।






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